Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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PDF/HTML Page 53 of 1906

 

ट्रेक-

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(कर लिया)। मातुष, मारुष शब्द भूल गये और भाव याद रह गया।

मुमुक्षुः- तिर्यंचको ऐसा ख्याल आता होगा कि इसमेंसे ही मेरी पूर्ण शान्ति प्रगट होगी, मुझे केवलज्ञान प्रगट होगा?

समाधानः- केवलज्ञान शब्द नहीं आता हो, परन्तु इसमें रहनेसे ही मुझे शान्ति और इसमें रहनेसे ही मुझे आनन्द है। बाहर जानेसे शान्ति या सुख नहीं है। ये मेरा कुछ नहीं है, ये मेरा स्व-घर है। उसमें शान्ति और आनन्द लगे। इसमें ही स्थिर हो जाऊँ, विकल्प छूट जाये और रागादि कुछ नहीं, मात्र वीतराग दशा हो और पूर्ण तत्त्वमें स्थिर हो जाऊँ। उसमें मेरा पूर्ण ज्ञायक प्रगट हो जाये। मैं लोकालोक जानूँ ऐसा इच्छा नहीं होती। मेरी पूर्ण वीतरागता हो जाओ। अर्थात मेरी पूर्णता हो जाओ। ऐसा ख्याल है। इसमें ही स्थिर होनेसे मेरी पूर्णता हो जाओ, ऐसा ख्याल है।

जाननेवाला आत्मा है वह पूर्ण जाननेवाला ही है। उसमें सब जानना होता ही है, ऐसा भाव उसमें है। आत्मा पूर्ण जान सकता है, जाननेवाला किसे नहीं जाने? सब जाननेवाला है, उसमें स्थिर हो जाऊँ। तो उसका जानना और वीतराग दशा एवं सब, इसमें स्थिर हो जाऊँ तो परिपूर्ण हो जाये, ऐसा भाव उसे होता है। जाननेवाला है, वह सब जान सकता है। कुछ नहीं जाने ऐसा नहीं है। लेकिन इसमें स्थिर हो जाऊँ तो यह जाननेवाला सब जाने, सहजरूपसे जाने ऐसा है। वीतराग हो जाऊँ तो यह सब छूट जाये ऐसा है।

मुमुक्षुः- अर्थात मुझे इसमेंसे मेरी शान्ति मिलती ही रहे, ऐसी भावना उसे होती है?

समाधानः- बस, शान्ति मिलती रहे। अन्दर ज्ञायककी धारा और शान्ति प्राप्त होती रहे, मैं तो जानने वाला ही हूँ। ये सब दुःखरूप है, वह मेरा स्वरूप ही नहीं है। मैं तत्त्व ही अलग हूँ, मैं भिन्न ही हूँ। यह तिर्यंचका शरीर मैं नहीं हूँ, मैं तो अन्दर कोई भिन्न आत्मा ही हूँ। ऐसा भावभासन है। मैं तो कोई अदभुत आत्मा हूँ।

(किसीको) ऐसा ज्ञान होता है कि वादविवादमें पहुँच जाये। अकलंक आचार्य आदि सबको वैसा शास्त्रका ज्ञान था। पहुँच जाये, कोई मुनि वादविवादमें पहुँच जाये, ऐसी युक्तिसे (वादविवाद करे)। ऐसा नहीं कर सके तो ऐसे प्रसंगमें पडते ही नहीं। जिसमें (स्वयं) पहुँच नहीं पाये वैसे प्रसंगमें नहीं पडते। स्वयंको स्वयंका प्रयोजन साधना है। स्वयंको निजात्माका करना है।

प्रश्नः- ... कल्पनासे लगे, पशुको ऐसे चैतन्यगोला भिन्न लगे।

समाधानः- पशु भी आत्मा है न। जाननेवाला आत्मा है। कहनेमें पशु है, लेकिन अन्दर जाननेवाला है। उसे सभी प्रकारका अन्दर वेदन है। जाननेवाला है। उसे शरीर