५४ तर्यंचका मिला, वह आत्मा कोई अलग नहीं हो गया है। तिर्यंचका शरीर है, परन्तु अन्दर वह आत्मा है। भगवानके समवसरणमें तिर्यंच आदि आते हैं। सिंह, बाघ आदि आत्मा है। गाय, भैंस, बकरे आदि सब आते हैं। आत्मा है, जानते हैं कि ये भगान हैं, ऐसा सब अन्दर जानते हैं। कोई-कोई शब्दोंका कुछ ज्ञान तो होता है। कुछ भावका (भासन), थोडा शब्दका ज्ञान (है)। ये भगवान हैं, कुछ अलग कहते हैं। वाणी सुनकर अन्दर सम्यग्दर्शन होता है। आत्मा है।
महावीर भगवानका सिंहका भव था। मुनि आकर कहते हैं, अरे..! शार्दूल! ये क्या करता है? आत्मा है न, अन्दर समझ गये। मैंने भगवानके पास सुना था, तू तीर्थंकर होनेवाला है। मुनिने ऐसे कहा तो अन्दर समझ गया। आँखमें आँसु आये, सम्यग्दर्शन प्राप्त हुआ। पूरा का पूरा, संपूर्ण आत्मा, प्रत्येकका आत्मा ऐसी ही शक्तिवाला और ऐसी ही ऋद्धिवाला आत्मा प्रत्येकमें है। तिर्यंचमें भी है। ऐसा लगे कि ये तिर्यंच क्या समझते होंगे? परन्तु तिर्यंच भी आत्मा है। वर्तमानमें सबकी शक्ति क्षीण हो गई। वर्तमान तिर्यंचमें कुछ दिखाई नहीं दे, लेकिन वह सब आत्मा है। चतुर्थ कालमें और अच्छे कालमें तो सब तिर्यंच ऐसी बुद्धिवाले और ऐसी शक्तिवाले (होते हैं)।
तिर्यंच हो तो भी वह आत्मा है न। मनुष्योंमें दुर्लभ हो गया है, तिर्यंचकी क्या बात (करे)? उसमें तो चतुर्थ काल हो, भगवान विराजते हो, लाखों मुनि, श्रावक और श्राविका, हजारो मुनि, लाखो श्रावक एवं श्राविका.. इतना धोख मुक्तिका मार्ग होता है। उसमें तिर्यंच भी प्राप्त करते हैं। तिर्यंचको पंचम गुणस्थान होता है। रामचंद्रजीका हाथी पंचम गुणस्थान (में) खाता नहीं, पीता नहीं। अन्दर समझता है। व्रत धारण किया है। सम्यग्दर्शन है।
समाधानः- ... इस लोकमें जितने परमाणु थे, ... एक-एक आकाशके प्रदेशमें अनन्त जन्म-मरण किये हैं। इस कालद्रव्यके जितने समय हैं, उन समयमें अनन्त बार स्वयंने जन्म-मरण किये। उतना काल। अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी, अनन्त बार जन्म (धारण किये)। उतने ही प्रकारके विभावके अध्यवसाय अनन्त किये। ऐसे परावर्तन उसने अनन्त बार किये, परन्तु अब तक उसके भवका अभाव नहीं हुआ।
भवका अभाव बतलाने वाले गुरुदेव मिले। मनुष्यजीवनमें वही करना है। बाकी तो संसार ऐसा ही है। जीव स्वयं शाश्वत मानता है, परन्तु शाश्वत तो कुछ नहीं है। शाश्वत तो एक आत्मा ही है। आयुष्य पूरा होता है तब चले जाते हैं। जीव मानता है कि सब मेरा है। कुछ भी अपना नहीं है। देवलोकका सागरोपमका आयुष्य होता है। वह सागरोपम इतना बडा कहलाता है, ऐसे सागरोपमका आयुष्य भी, देवोंको अमरापुरी कहते हैं। एक सागर जितना आयुष्य होता है। सागरोपमका आयुष्य भी पूरा हो जाता