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कारण हो, ऐसा बने। लेकिन वह विशेष हो तो ही आगे बढा जाय, ऐसा नहीं है।
शिवभूति मुनि कम जानते थे, तो भी वे आगे बढ गये। भेदज्ञान मूल प्रयोजनभूत जाने
तो आत्माकी पहचान होती है, स्वानुभूति होती है, भवका अभाव होता है। क्षयोपशमके
साथ कोई सम्बन्ध नहीं है।
समाधानः- .. यथार्थ लगन लगे तो कर सकता है। ऐसी लगनी होनी चाहिये। ... सिद्धको भी प्रभु और संसारीको प्रभु। प्रभु है, संसारमें होनेके बावजूद द्रव्यदृष्टिसे सब प्रभु है। क्योंकि उसका स्वभाव जैसा है वैसा शक्तिमें है। शक्ति अपेक्षासे प्रभु है। अनादि कालसे परिभ्रमण किया, बहुत विभाव हुए तो भी अन्दर द्रव्यमें जो अनन्त शक्तियाँ भरी है, वह शक्तियाँ वैसी ही है। ईश्वरता, जो प्रभुता है उस प्रभुतामें अल्प भी न्यूनता नहीं हुयी है अथवा उसका-प्रभुताका एक अंश भी नाश नहीं हुआ है। इसलिये वह शक्ति अपेक्षासे प्रभु है।
भगवान तो द्रव्यदृष्टि और पर्याय अपेक्षासे, सर्व प्रकारसे प्रभु है। वे तो साक्षात प्रभु है। परन्तु द्रव्यदृष्टिसे सब प्रभु हैं। गुरुदेव कहते थे, भगवान आत्मा। तू स्वयं भगवान है। शक्ति अपेक्षासे वह भगवान है। द्रव्य पर दृष्टि जाये कि मैं पूर्णतासे भरा सर्व शक्तिसे भरपूर हूँ। तो उस पर दृष्टि करे तो उसमें पर्यायें प्रगट होती है। परन्तु स्वयंमें कुछ स्वभाव ही नहीं है तो स्वभावके आश्रय बिना पर्याय कहाँ-से प्रगट होगी?
ऐसी श्रद्धा हो कि मैं प्रभु हूँ, शक्ति अपेक्षासे मुझमें सब भरा है। स्वभावके आश्रय बिना कुछ प्रगट नहीं होता। मात्र बाहरका करते रहनेसे प्रगट नहीं होता। अन्दर स्वभावका आश्रय ले, प्रभुका आश्रय ले तो प्रभुता प्रगट होती है। प्रभुका आश्रय ले और विभावसे भिन्न पडे, उसका भेदज्ञान करे तो उसमेंसे उसकी प्रभुता प्रगट होती है।
ज्ञानादि अनन्त गुण भरपूर भरे हैं। (जल) मलिन दिखे, परन्तु उसकी स्वभावकी शीतलता जाती नहीं। ऐसे आत्मा जो शान्तस्वभावी शीतलस्वरूप है, उसकी शीतलता जाती नहीं। अनन्त-अनन्त शान्ति और अनन्त शीतलतासे भरा है, अनादिअनन्त है।
मुमुक्षुः- .. कार्यरूप कौन परिणमता है?
समाधानः- कार्यरूप पर्याय परिणत होती है। परन्तु अभेदसे कहें तो द्रव्य भी कार्यरूप भी आया, गुण कार्यरूप हुआ, पर्याय कार्यरूप हुयी। वैसे तो पर्याय कार्यरूप होती है। द्रव्यके आश्रयसे कार्य पर्यायरूप होता है। पर्याय कार्यरूप होती है। द्रव्य, गुण, पर्याय सब अभेद ले तो द्रव्य भी कार्यरूप हुआ और गुण भी कार्यरूप हुआ। शक्तिरूप था वह प्रगट होता है।
... केवलज्ञानरूप परिणमन किया। आत्माने स्वानुभूतिरूप परिणमन किया। ज्ञान,