९८ आनन्द स्वयं प्रगटरूपसे परिणमन किया, ऐसा भी कहनेमें आता है। परन्तु कार्य पर्याय करती है। लेकिन द्रव्यके आश्रयसे करती है।
मुमुक्षुः- सम्यग्दर्शन प्रगट हुआ तो श्रद्धागुणमें निर्मल हुआ, बाकी गुणोंमें अशुद्ध है।
समाधानः- सर्व गुणांश सो सम्यग्दर्शन। श्रद्धागुण प्रगट हुआ, सम्यग्दर्शन हुआ उसके साथ ज्ञान, चारित्र सब प्रगट हुआ। ज्ञान सम्यकरूप परिणमन हुआ। चारित्र, अमुक अंशमें चारित्र-स्वरूपाचरण चारित्र हुआ। जो दिशा पर-ओर थी या परसन्मुख था, दृष्टि परसन्मुख थी वह स्वसन्मुख हुयी, वहाँ प्रत्येक गुण जो यथायोग्य निर्मल होनेयोग्य थे वह सब निर्मल हो गये। एक ओर बिलकुल अशुद्धता और एक ओर शुद्धता, ऐसा द्रव्यमें खण्ड नहीं होता। द्रव्य तो अखण्ड है। इसलिये एक सम्यग्दर्शन प्रगट हुआ, उसके साथ सबकी दिशा पलट गयी तो सब निर्मल हो गये। जो अशुद्ध थे, सब निर्मल हो गये। कितन ही गुण तो मलिन होते ही नहीं। जो मलिन होते हैं, वह सब आंशिक निर्मल हुए। पूर्ण निर्मल तो केवलज्ञान होता है, तब होता है।
मुमुक्षुः- माताजी! सम्यग्दर्शन होने पर सब गुण निर्मल हुए। तो जैसे दूसरे सब गुण शुद्ध है, कुछ ही गुण अशुद्ध थे। तो जब मिथ्यादर्शन होता है, उस समय सब गुणोंका अशुद्ध परिणमन है, ऐसा कह सकते हैं?
समाधानः- सब गुण अशुद्धरूप नहीं परिणमते। कुछ गुण शुद्धरूप रहते हैं। लेकिन वह सब शक्तिमें है। जैसे कि अस्तित्व, वस्तुत्व ऐसे कितने ही गुण जो भाषामें नहीं आते ऐसे हैं। ऐसे सब गुण अशुद्ध नहीं हो जाते। मिथ्यात्वमें एकत्वबुद्धि है तो भी कितने ही गुण अशुद्ध नहीं होते। और चारित्र.. उसके सिवा कुछएक विभावयुक्त होते हैं और कुछ गुण निर्मल रहते हैं।
ऐसा कहनेमें आये कि स्वयं अशुद्ध हो गया, द्रव्य अशुद्ध हो गया। ऐसा कहनेमें आये। सब अशुद्ध नहीं हो जाता। शक्तिमें शुद्ध है। कितने ही गुण शुद्ध रहते हैं। दृष्टि स्वरूपकी ओर गयी, सम्यग्दर्शनमें निर्मलता प्रगट हुयी, स्वानुभूति हुयी। जो आंशिक मलिन थे वह निर्मल हो जाते हैं। चलता है तो एक कदम ऐसे जाये और एक कदम ऐसे रहे, दिशा बदल गयी इसलिये सब स्वरूप सन्मुख हो जाते हैं।
मुमुक्षुः- ऐसा आता है कि चैतन्यमेंसे परिणमित हुयी भावना अगर न फले तो चौदह ब्रह्माण्डको शून्य होना पडे, उसका अर्थ क्या? चौदह ब्रह्माण्डको शून्य होना पडे?
समाधानः- चैतन्यमेंसे परिणमित हुयी भावना, यदि ऐसे चैतन्यके आश्रयसे भावना हुयी हो कि मुझे चैतन्यकी ही परिणति प्रगट करनी हो, ऐसी भावना हो और उस भावना अनुसार यदि द्रव्य परिणमे नहीं, यदि द्रव्य भावना अनुसार परिणमे नहीं तो