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न हो, चैतन्यकी भावना पूर्ण न हो यदि ऐसा हो तो ब्रह्माण्ड शून्य हो जाये अर्थात
प्रत्येक द्रव्यका नाश हो जाये। उसकी यथार्थ भावना अनुसार चैतन्यका परिणमन नहीं
हो तो प्रत्येक द्रव्यका नाश हो जाये। किसीकी भावना पूर्ण न हो। एक द्रव्यकी भावना
पूर्ण न हो तो किसीकी पूर्ण न हो। उस रूप द्रव्य परिणमे नहीं, द्रव्य कोई अलग
प्रकारसे परिणमे और भावना दूसरे प्रकारसे परिणमे (ऐसा नहीं होता)।
ऐसी यथार्थ भावना हो कि द्रव्य परिणमे ही नहीं और भावना करता रहे, ऐसा बनता ही नहीं। तो ब्रह्माण्डको शून्य होना पडे, प्रत्येक द्रव्यका नाश हो जाय। एकमें जो स्वभाव है, वैसा प्रत्येकमें हो जाय। प्रत्येक द्रव्यका नाश हो जाय। इसलिये ऐसा कुछ नहीं बनता। ब्रह्माण्डके शून्य होनेमें द्रव्यका नाश होना चाहिये। लेकिन द्रव्यका नाश होता नहीं। जिस प्रकारकी द्रव्यकी भावना हो, वैसी द्रव्यकी परिणति हुए बिना रहती ही नहीं।
यदि अंतरकी गहराईमेंसे भावना प्रगट हुयी कि आत्माका आश्रय और आत्माकी स्वानुभूति... आत्मामें ही रहना है, बाहर जाना ही नहीं है। ऐसी अंतरंगसे गहरी भावना प्रगट होकर आत्मामें यदि वह परिणमित न हो तो ऐसा बनता ही नहीं। आत्माका परिणमन होना ही चाहिये। अन्यथा उसे द्रव्य ही नहीं कहते। यदि वैसे द्रव्य अपनी सानुकूल परिणतिरूप परिणमित न हो तो वह द्रव्य ही कैसा? द्रव्यका नाश हो जाय। उस प्रकारसे सब द्रव्यका नाश हो जाय। इसलिये ब्रह्माण्डको शून्य होना पडे।
मुमुक्षुः- माताजी! उसमें अनन्त तीर्थंकरोंने कही हुयी बात है, ऐसा जोर कैसे आया?
समाधानः- ऐसी ही वस्तुस्थिति है। द्रव्य-गुण-पर्यायकी ऐसी वस्तुस्थिति है। ऐसी वस्तुस्थिति ही है। भगवानने कही हुयी बात है। वस्तुका स्वरूप जो द्रव्य-गुण-पर्यायका भगवानने कहा कि द्रव्यानुसारी परिणति होती ही है। द्रव्याश्रित जो परिणमित हुयी, द्रव्यके आश्रयमें जो गहरी भावना हो, वैसी पर्याय होती ही है। यह भगवानने कहा है। द्रव्य- गुण-पर्याय द्रव्यके आश्रयसे रहे हैं। द्रव्य-गुण-पर्यायका स्वरूप भगवानने कहा है। अनन्त भगवानोंने कहा है। ... द्रव्य-गुण-पर्यायका स्वरूप तीर्थंकरोंने कहा है कि चैतन्यकी जैसी भावना हो वैसी चैतन्यकी परिणति होती ही है।
मुमुक्षुः- उसमें है कि चैतन्यकी परिणतिके साथ कुदरत बन्धी हुयी है।
समाधानः- कुदरत यानी स्वयं। चैतन्यकी भावनाके साथ कुदहत बन्धी हुयी है। जैसी उसकी भावना हो, उस अनुसार द्रव्य परिणमे, गुण परिणमे, उसी प्रकार सब पर्यायें परिणमति हैं। कुदरत बन्धी है। उसकी भावना जो अन्दर शुद्धात्माकी भावना हो