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शीतलता स्वयं है। इस प्रकार शीतलतामेंसे वह तो पुदगल है इसलिये परिणमन बदल
जाता है। लेकिन जड कभी चैतन्य नहीं होता, चैतन्य कभी जड नहीं होता। ऐसा वस्तुका
स्वभाव है।
वैसे एक द्रव्य दूसरे द्रव्यको कुछ नहीं कर सकता। ऐसा वस्तुका स्वभाव है। निरुत्तर करनेके लिये नहीं है। कोई किसीको कुछ नहीं कर सकता। यदि कोई किसीका कर सके तो द्रव्य पराधीन हो जाय। उसकी स्वतंत्रता नहीं रहती। कोई किसीको पलट नहीं सकता। स्वयं अपने भाव स्वयं करता है। उस भावमें निमित्त कर्मका होता है। परन्तु वह कर्म बलात नहीं करवाता। बलात करवाये तो पदार्थ पराधीन हो जाय। कोई किसीको कर नहीं सकता।
भगवानकी वाणी, गुरुदेवकी वाणी है, प्रबल निमित्त है। फिर भी स्वयंका उपादान तैयार हो, स्वयं पुरुषार्थ करे तो होता है। कोई किसीका कर नहीं सकता। प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्र है। तो भी जो गुरुका उपकार है। आत्मार्थी, गुरुने समझाया ऐसा कहता है। वह निमित्त प्रबल है इसलिये। परन्तु प्रत्येक द्रव्यकी स्वतंत्रता बताते हैं। उसमें निरुत्तर करनेके लिये नहीं है। प्रत्येकके द्रव्य-गुण-पर्याय भिन्न-भिन्न हैं।
चुंबक हो और सुई हो तो सुई चुंबकके साथ चीपक जाती है। वह स्वयं है, उसका स्वभाव ही ऐसा है। उसका स्वभाव ऐसा है, वैसा स्वभाव ही है कि जहाँ चुंबक हो वहाँ सुई चीपक जाय।
वैसे स्वयं जैसे भाव करे वैसे कर्म बन्धते हैं। उसे कोई कर नहीं सकता। निरुत्तर करनेके लिये नहीं है। निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध ऐसा ही है। वस्तुका स्वभाव ही ऐसा है।
मुमुक्षुः- ऐसा ही वस्तुका स्वभाव है।
समाधानः- वस्तुका स्वभाव ही ऐसा है। वह जाननेके लिये है। उसका तू ज्ञान कर। जिस प्रकार वह सब स्वयं है, वैसे तू भी स्वतंत्र है। तेरे भावमें स्वतंत्र है। वैसे परद्रव्य तुझे कुछ नहीं कर सकता। तू तुझसे स्वतंत्र है। तू तेरे विभावभावमें पुरुषार्थकी मन्दतासे तू करता है, तुझे बलात कोई नहीं करवाता। और तू पुरुषार्थ कर उसमें भी स्वतंत्र है। ऐसे स्वतंत्रता बतायी है। जैसे वह स्वतंत्र है, वैसे तू भी स्वतंत्र है।
मुमुक्षुः- उस वक्त निमित्त सहज होता है, ऐसा कहना है।
समाधानः- हाँ, निमित्त उस प्रकारका सहज होता है। होता है। उसकी योग्यता अनुसार निमित्त होता है, परन्तु वह स्वयं होता है। तू उसे कर नहीं सकता, कोई उसे ला नहीं सकता। विश्वकी रचना कोई नहीं कर सकता। पदार्थ स्वयं परिणमते हैं।