Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

१०८

मुमुक्षुः- सच्ची लगन नहीं लगी है।

समाधानः- सच्ची लगनी ही अंतरमें नहीं लगी है। अंतरमें लगी हो तो परिणति पलटे। परिणति पलटती नहीं है। अंतरमें ज्ञायककी जो निवृत्त दशा, ज्ञायककी जो निवृत्तमय परिणति, ज्ञायककी जाननेकी परिणति, उसे उस प्रकारसे अंतरमें लगनी लगे तो वैसी परिणति प्रगट होती है। उस ओर छूटता नहीं, इस ओर आता नहीं। भावना करता रहता है, वहाँ खडे-खडे, मुझे ज्ञायक चाहिये ऐसा करता रहता है, अमुक प्रकारसे करता है, परन्तु जितना कारण देना चाहिये उतना कारण देता नहीं। कार्य कहाँ-से हो?

मुमुक्षुः- माताजी! बाहरकी तो कोई इच्छा है नहीं, न कोई पुण्यका फल चाहते हैं और कुछ भी नहीं चाहते हैं। अन्दरमें घबराहट भी बहुत होती है। कहाँ जायेंगे आत्मज्ञानके बिना? ... कहीं दिखायी देता नहीं है। ऐसी परिणति कैसे हो? हमने कभी किया ही नहीं, हमको ऐसा हुआ ही नहीं।

समाधानः- बाहरका कुछ नहीं चाहिये, पुण्य नहीं चाहिये, घबराहट होती हो, परन्तु अंतरमें परिणति तो स्वयं प्रगट करे तो होती है। अन्दरसे स्वयं छूटता नहीं है। कहाँसे हो? घबराहट हो तो भी। उस जातिका, अंतरमेंसे जिस जातिका होना चाहिये वह होता नहीं। विकल्पमें घबराहट हो, पुण्य नहीं चाहिये, कुछ नहीं चाहिये, ऐसा करता हो, परन्तु जितनी अंतरमें उसकी तीव्रता होनी चाहिये, उतनी होती नहीं।

छाछमेंसे मक्खन निकालना है तो उसे बिलोता है। लेकिन जितना चाहिये उतना करता नहीं, मक्खन कैसे निकले? थोड करके मानता है, मैंने बहुत किया, मैंने बहुत किया। मक्खन निकालना है। बहुत क्या किया? मक्खन अन्दरसे (निकालनेको) छाछ बिलोये।

(वैसे) अन्दरसे ज्ञायक-ज्ञायकका अभ्यास तीव्रपने अंतरमेंसे करे तो मक्खन-तो अंतरमें भेदज्ञान होता है। अंतरमेंसे स्वयं द्रव्य पर दृष्टि करके जितना उसे बलवानरूपसे होना चाहिये उतना होता नहीं। अनादिका अभ्यास है (इसलिये) बार-बार वहाँ दृष्टि जाती है। जितनी दृष्टि हमेशा बाहर ही जाती है, वैसी ही दृष्टि अपनी ओर नहीं जाती है। जैसी बाहरकी परिणति निर्विचाररूपसे दौडती है, वैसे ही अंतरमें परिणति आत्मामेंसे लगती नहीं है, ऐसा कारण देता नहीं है इसलिये कार्य नहीं हो रहा है। अन्दरमेंसे यथार्थरूपसे हो तो जैसे मक्खन निकले वैसे निकले बिना रहे नहीं आत्मामें। शक्तिमें भरा है।

मुमुक्षुः- हे पूज्य भगवती माता! इस कालमें जीव अति स्थूल बुद्धिवाले हैं, इसलिये वे राग और आत्माका भेदज्ञान कर सके? यह आप कृपा करके समझाइये।