Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

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चतुर्थ कालमें भगवानके समवसरणमें एकदम प्राप्त कर लेते थे और इस पंचमकालमें गुरुदेवने मार्ग बताया तो एकदम प्राप्त हो जाय ऐसा है, प्राप्त नहीं हो ऐसा नहीं है। इस कालमेें सम्यग्दर्शन हो सके ऐसा है। केवलज्ञान हो सके ऐसा नहीं है, परन्तु सम्यग्दर्शन प्रयोजनभूत ज्ञान तो हो सके ऐसा है। तिर्यंच है वह नाम तक नहीं जानते कि किसे आस्रव कहते हैं, किसे बन्ध कहते हैं, किसे पुण्य-पाप कहते हैं, उसका नाम नहीं जानते। परन्तु यह ज्ञान सो मैं हूँ और जो यह सब आकुलतास्वरूप है वह मैं नहीं हूँ। मैं उससे भिन्न चैतन्यदेव ज्ञायक हूँ। इस प्रकार भाव समझकर, तिर्यंच नाम तक नहीं जानते ऐसे कितने ही तिर्यंच ढाई द्वीपके बाहर हैं, वे भी आत्माका ज्ञान कर सकते हैं। पूर्व संस्कार हो तो वह तिर्यंचके भवमें एकदम कर सकता है। तो इस मनुष्यभवमें क्यों नहीं हो सकता? हो सके ऐसा है।

मुमुक्षुः- स्वभावकी रुचि करे, वह स्थूल बुद्धि हो तो भी सूक्ष्म बुद्धि हो गयी, कहनेमें आये?

समाधानः- स्थूल बुद्धि हो तो भी सूक्ष्म बुद्धि हो जाती है। अपना स्वभाव है न। स्थूल बुद्धि अर्थात उसकी बुद्धि बाहर जाती है। अंतरमें दृष्टि करे तो वह सूक्ष्म बुद्धि जाती है और सूक्ष्म होकर स्वयंको पहचान सकता है, न पहचान सके ऐसा नहीं है।

आचार्यदेव कहते हैं न कि तू अभ्यास कर। इस आत्माका छः महिने अभ्यास कर, फिर देख अन्दर होता है या नहीं। परन्तु स्वयं अभ्यास ही नहीं करता है। चैतन्यमें निश्चल होकर अंतरमें देख, आत्मा प्रगट होता है या नहीं। परन्तु स्वयं अंतरमें जाकर देखता नहीं, उसका अभ्यास करता नहीं। थोडा समय करे फिर ऐसा विचार करे कि मैंने बहुत किया। लेकिन क्षण-क्षणमें उसकी लगनी लगनी चाहिये। जैसी एकत्वबुद्धि है तो निरंतर चल रही है, वैसे भेदज्ञान करनेका अंतरमें वैसा प्रयत्न नहीं करता है। क्षण-क्षणमें स्वयं भेदज्ञानकी धारा प्रगट करे, ऐसा प्रयास नहीं करता है, इसिलये कहाँसे प्रगट हो? स्थूल बुद्धि हो तो भी सूक्ष्म हो जाय और इस प्रयोजनभूत तत्त्वको पहचाने एवं आत्माके भवका अभाव हो। और अन्दरसे आत्मा प्रगट होता है, नहीं हो सकेऐसा नहीं है। इस कालमें गुरुदेवने परम उपकार किया है। दुर्लभको भी सुलभ कर दिया है।

मुमुक्षुः- सूक्ष्म बुद्धि हो और ऐसा प्रयत्न न करे तो स्थूल बुद्धि हो जाय।

समाधानः- स्वयं ऐसे संस्कार गहरे नहीं डाले और वैसा ही रहे तो स्थूल हो जाय। लेकिन स्वयं संस्कार डाले, सूक्ष्म बुद्धि (करके) स्वयं अंतरमें गहराईमें जाय तो उसके संस्कार साथमें आये तो दूसरे भवमें प्रगट होनेका अवकाश है।

मुमुक्षुः- सातवीं नर्कका नारकी सम्यग्दर्शन प्रगट करता होगा वह भी सूक्ष्म बुद्धिसे