Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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ही करता होगा?

समाधानः- सूक्ष्म बुद्धिसे करता है। सातवीं नर्कका नारकी पूर्वके संस्कार लेकर गया है। वहाँ लेकर गया है इसलिये वहाँ उसे सूक्ष्म बुद्धि हो जाती है। नारकीको भी ऐसा होता है कि अरे..! यह सब क्या है? यह जीवन? यह दुःख? यह दुःखमय जीवन? यह क्या है? अन्दर ऐसा कोई आत्मा है कि जहाँ सुख और शान्ति मिले। ऐसा कोई तत्त्व है कि नहीं? कि बस! यह दुःख ही है?

नारकीके जीवोंको एक क्षणकी भी शान्ति नहीं है। अंतर विभावका दुःख तो है, लेकिन बाह्य संयोगोंका भी उतना दुःख है। उसे ऐसा विचार आता है कि अरे..! यह क्या? बस, अकेला दुःख? इसमें कोई सुखका मार्ग है कि नहीं? ऐसा (विचार) करके वह गहराईमें जाता है और उसकी सूक्ष्म बुद्धि होती है और ज्ञानस्वरूप आत्मा ज्ञायकको ग्रहण करता है और विभावसे भिन्न पड जाता है। और स्वानुभूतिको प्रगट करता है। सातवीं नर्कका नारकी भी कर सकता है। आत्मा है न? स्वभाव तो उसका है। अनन्त शक्तिसे भरपूर उसका स्वभाव है।

मुमुक्षुः- हे पूज्य भगवती माता! एक प्रश्न है। बन्ध-मोक्षका कारण और बन्ध- मोक्षके परिणामसे सम्यग्दर्शनका विषयभूत भगवान शून्य है। तो मुक्त पर्यायसे जो शून्य है, जिसका आश्रय लेनेसे मुक्तपर्याय प्रगट हो, वह .. जैसा लगता है, तो इस विषयमें स्पष्टता करनेकी कृपा कीजिये।

समाधानः- बन्ध-मोक्षके परिणाम, बन्ध-मोक्षका कारण वह सब पर्यायें हैं। वस्तुका स्वरूप और पर्याय भिन्न है, उस अपेक्षासे है। पर्याय एक अंश है और द्रव्य अंशी है। अंशीका आश्रय लेनेसे अंश प्रगट होता है। परन्तु वह अंश-अंशीका भेद है। लेकिन ऐसा सर्वथा भेद नहीं है। ऐसा सर्वथा भेद (नहीं है कि) दो द्रव्यका भेद हो, ऐसा अत्यंत भेद नहीं है। अंश-अंशीका भेद है। और वह द्रव्य पर दृष्टि करे तो ही वह पर्याय प्रगट होती है। सम्यग्दर्शनका आश्रय द्रव्य है। उस द्रव्य पर दृष्टि करनेसे सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र सब प्रगट होता है। आत्मा उससे ऐसा भिन्न नहीं है। उस पर्यायका उसे वेदन होता है। उससे शून्य यानी पर्याय उससे कहीं दूर भिन्न रह जाय और द्रव्य कहीं दूर भिन्न रहे, ऐसा नहीं है। ऐसा अत्यंत भेद नहीं है। जो पर्याय प्रगट होती है उसका आत्माको वेदन होता है। सम्यग्दर्शनका वेदन होता है, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्रका भी आत्माको वेदन है।

निर्मल पर्यायका वेदन होता है। साधना जो होती है, वह साधना कोई अन्यके लिये नहीं होती है। स्वयं आत्मस्वरूपकी प्राप्तिके लिये होती है। वह साधना निष्फल नहीं जाती है। उसे आत्माका वेदन होता है। और मोक्षकी पर्याय-मुक्तिकी पर्याय जो