Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

११२ होती है, केवलज्ञानकी पर्याय होती है, उस पर्यायका आत्माको वेदन है। द्रव्यदृष्टिके विषयमें नहीं है। द्रव्यदृष्टिके विषयमें वह नहीं है।

मुमुक्षुः- इस अपेक्षासे शून्य है।

समाधानः- इस अपेक्षासे उसे भिन्न कहनेमें आता है।

मुमुक्षुः- ..

समाधानः- हाँ, ऐसा भेद है। अत्यंत भेद नहीं है। उसका ऐसा अत्यंत भेद नहीं है कि उसका वेदन न हो। सम्यग्दर्शन प्रगट होता है तब सम्यग्दर्शनका वेदन, स्वानुभूति होती है। द्रव्य पर दृष्टि करनेसे वह सब प्रगट होता है। इसलिये वह शून्य है तो क्यों प्रगट करना, ऐसा नहीं है। द्रव्यदृष्टिके बलसे सम्यग्दर्शन, फिर आगे जाय तो मुनिदशा आये, छठ्ठे-सातवें गुणस्थानमें झुलता है। सबका मुनिराजको भी वेदन है, छठ्ठे-सातवें गुणस्थानमें। परन्तु वह साधक पर्याय है, पूर्णता नहीं है। पूर्ण होते हैं तब केवलज्ञान होता है। परन्तु द्रव्यदृष्टिमें केवलज्ञानकी पर्याय भी गौण होती है। मुक्तिकी पर्याय भी नहीं है। द्रव्यदृष्टिकी अपेक्षासे केवलज्ञान पर दृष्टि नहीं है, मुक्तिकी पर्याय पर दृष्टि नहीं है। सम्यग्दर्शनकी पर्याय पर दृष्टि नहीं है। उसकी दृष्टि कहीं नहीं है।

दृष्टि तो एक द्रव्यको ग्रहण करके सब पर्यायको गौण करती है। जो सम्यग्दर्शन प्रगट होता है, उस सम्यग्दर्शनका विषय जो द्रव्य है, द्रव्यको विषय किया लेकिन उसकी दृष्टि पर्याय पर नहीं है, उसकी दृष्टि तो द्रव्य पर है। द्रव्यदृष्टिमें कुछ नहीं आता है। पाँच ज्ञानके भेद, उदयभाव, उपशमभाव, क्षायिकभाव आदि सबके भेद उसमें नहीं आते। क्षायिक पर्याय प्रगट हो तो भी उस पर उसकी दृष्टि नहीं है। द्रव्यदृष्टिमें कुछ नहीं आता है। द्रव्यदृष्टिके बलसे ही सब पर्याय प्रगट होती है। पारिणामिकभाव पर दृष्टि देनेसे सब प्रगट होता है। द्रव्यदृष्टिके बलसे सब प्रगट होता है और वह पर्यायको गौण करती है। द्रव्यदृष्टि पर्यायको गौण करती है। और पर्याय उसके जोरसे प्रगट होती है और उस पर्यायका वेदन होता है।

जो दृष्टि द्रव्यका द्रव्यका आश्रय करती है, वह दृष्टि पर्यायको गौण करती है। परन्तु ज्ञानमें सब आता है। उस पर्यायका वेदन भी होता है। इसलिये वह सब निष्फल नहीं है। द्रव्यदृष्टिके बलमें बन्ध-मोक्षके परिणाम भी जिसमें नहीं है, केवलज्ञान भी जिसमें नहीं है, ऐसा कहनेमें आता है। एक भी पद, यह पाँच ज्ञान, कोई भी पद केवलज्ञानका पद भी आत्माको नहीं चाहिये। आता है न? मोक्ष भी नहीं चाहिये। उसका मतलब मोक्षकी पर्याय पर दृष्टि नहीं है। केवलज्ञान पर दृष्टि नहीं है, परन्तु द्रव्य पर ही दृष्टि है। दृष्टिके बलमें वह सब गौण होता है। उसे निकाल देनेमें आता है, परन्तु उसका वेदन होता है।