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उससे शून्य (कहा तो) वह ऐसा शून्य नहीं है कि उसका वेदन ही नहीं हो। उसका कोई अपूर्व होता है, उसका कोई अनुपम वेदन होता है। जो भाषामें न आवे ऐसा वेदन सम्यग्दर्शन, स्वानुभूतिका होता है। पूर्ण होता है तब पूर्ण वीतराग दशामें, चारित्र दशामें आत्माका कोई अपूर्व अनुपम वेदन होता है। इसलिये वह सब पर्यायें ऐसी नहीं है कि बिलकुल भेद है। ऐसा नहीं है।
मुमुक्षुः- वह कोई अपेक्षाका कथन है। दृष्टिकी अपेक्षामें...
समाधानः- हाँ, द्रव्यदृष्टिकी अपेक्षासे। साधकदशामें द्रव्यदृष्टि मुख्य रहती है। साधकदशामें द्रव्यदृष्टि मुख्य रहती है, इसलिये पर्यायको गौण करनेमें आता है। परन्तु ज्ञान साथमें उसका विवेक करता रहता है। द्रव्यको भी ज्ञान जानता है और पर्यायको भी ज्ञान जानता है। सबको जानता है। उसका वेदन ही न हो तो फिर यह साधकदशा किसकी? यह जो दर्शन, ज्ञान, चारित्रकी साधना करनेमें आती है वह क्या? तो फिक्षर यह विभाव, यह स्वभाव वह सब क्या? पर्याय होवे ही नहीं तो।
इसी मार्गसे सब मोक्षको प्राप्त हुए हैं। इस मार्गसे द्रव्यदृष्टिके बलसे पर्यायें प्रगट होती हैं। तीर्थंकर भगवंतों, चक्रवर्ती, भरत चक्रवर्ती आदि यह साधना करके मोक्ष पधारे हैं। इसी मार्गसे। और पर्याय तो सिद्ध भगवानमें भी होती है। पर्याय-सिद्धदशा हुयी, द्रव्यदृष्टिके बलसे पर्यायको गौण की द्रव्यदृष्टिमें, इसलिये सिद्ध भगवानमें पर्याय चली गयी ऐसा नहीं है। सिद्ध भगवानमें भी पर्यायें हैं। जो ज्ञानगुण प्रगट हुआ-पूर्ण केवलज्ञान, आनन्दगुण ऐसे अनन्त गुण प्रगट हुए, उन सब गुणोंकी पर्यायें एक समयमें परिणमन कर रही है। सिद्ध भगवानको अगुरुलघुगुण है, उसकी सब पर्यायें, उसकी षटगुणहानिवृद्धिरूपसे कोई अचिंत्यरूपसे वह द्रव्य परिणमन कर रहा है। प्रगटरूपसे!
संसारीओंको शक्तिरूप है, सिद्ध भगवानको प्रगटरूपसे कोई अनुपम रूपसे अनन्त गुणकी पर्यायें एक समयमें परिणमन कर रही है। ऐसी अनन्त काल पर्यंत परिणमन करती है। तो भी उसमेंसे कुछ कम नहीं हो जाता। ऐसी अनन्त काल पर्यंत परिणमन करती है।
अतः पर्याय वह द्रव्यका स्वरूप है। द्रव्य-गुण-पर्याय द्रव्यका ही स्वरूप है। द्रव्यको मुख्य करके पर्याय पलटती है और द्रव्य शाश्वत रहता है, इसलिये द्रव्यका आश्रय लेनेमें आता है। द्रव्यके आश्रयसे आगे बढा जाता है।
मुमुक्षुः- द्रव्य-गुण-पर्याय द्रव्यका ही स्वरूप है? समाधानः- हाँ, वह द्रव्यका ही स्वरूप है। उससे भिन्न नहीं है। द्रव्य-गुण- पर्याय, उत्पाद-व्यय-ध्रुव आदि सब द्रव्यका ही स्वरूप है।