Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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मुमुक्षुः- शक्तिका?

समाधानः- सम्यग्दर्शनमें दर्शन होता है, उसकी पर्यायमें जो स्वानुभूतिकी पर्याय प्रगट होती है, उसके दर्शन होते हैं। उसमें द्रव्य और पर्याय दोनों भिन्न-भिन्न नहीं है। उसमें आत्माका दर्शन साथमें हो जाते हैं।

मुमुक्षुः- निरावरण हो तो पर्यायकी अशुद्धता उसे स्पर्शती नहीं?

समाधानः- स्पर्श नहीं करती। निरावरण ही रहती है, पर्यायमें अशुद्धता रहती है। स्फटिक निर्मल है, उसमें लाल-पीला होता है तो वह लाल-पीला उसके अन्दर मूल तलमें प्रवेश नहीं करता।

मुमुक्षुः- ऐसा ही कोई अतीन्द्रिय स्वभाव है।

समाधानः- ऐसा ही वस्तुका स्वभाव है।

मुमुक्षुः- हे पूज्य धर्मात्मा! हम मुमुक्षुओंका ... कि ज्ञानीपुरुषों अर्थात धर्मी- सम्यग्दृष्टि पूरा दिन क्या करते होंगे? उन्हें परमें तो कुछ रहा नहीं, फिर भी समय कैसे व्यतीत होता होगा? यह कृपा करके समझाईये।

समाधानः- बाहरसे कोई कार्य करना हो तो समय व्यतीत हो, ऐसा नहीं है। सम्यग्दृष्टिको तो अंतरमें ज्ञायककी परिणति प्रगट हुयी है। ज्ञायककी परिणति ज्ञाताकी धारा चलती है। उसे तो क्षण-क्षणमें पुरुषार्थकी डोर साधनाकी पर्याय हो रही है। क्षण- क्षणमें विभाव होता है, उससे भिन्न होकर ज्ञायककी धारा, ज्ञायककी परिणति चालू ही है, पुरुषार्थकी डोर क्षण-क्षणमें चलती ही है और सहज ज्ञाताधारा चल रही है। पूरा दिन क्या करते होंगे (यह सवाल नहीं है)।

आत्माका तो निवृत्त स्वभाव है। विभावमें कुछ करे, बाहरका कुछ करे तो उसका समय व्यतीत हो, ऐसा नहीं है। अंतरमें कर्ता, क्रिया, कर्म आत्मामें है। बाहरका कुछ कर ही नहीं सकता है। बाहरमें करनेका अभिमानमात्र जीवने किया है कि मैं दूसरेका कर सकता हूँ। बाकी अंतरमें उसकी आत्माकी स्वरूप परिणतिकी क्रिया और उसका कार्य उसे चालू ही है। उसे क्षण-क्षणमें भेदज्ञानकी धारा चालू ही है। कभी-कभी विकल्प छूटकर स्वानुभूति प्रगट होती है और भेदज्ञानकी धारा चालू है। खाते-पीते, निद्रामें, स्वप्नमें उसे ज्ञायककी धारा चालू है। बाकी गृहस्थाश्रममें है तो बाह्य क्रियामें जुडता है। परन्तु उसकी ज्ञाताधारा चालू है। बाहरसे कार्य करते हुए दिखायी दें, फिर भी वह अंतरसे तो ज्ञायक ही रहता है। वह अंतरमें ज्ञायक हो गया, इसलिये वह कुछ करता नहीं है इसलिये उसका समय व्यतती नहीं होता है, ऐसा अर्थ नहीं है। विभावके कायामें जुडे तो समय व्यतीत हो, वह तो आकुलता है।

अंतरमें निवृत्त परिणति, शान्तिमय परिणतिमें जिसे सुख लगता है, बाहरमें कहीं