Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 568 of 1906

 

ट्रेक-

९१

१३५

मुमुक्षुः- अन्दर जाने पर सुख दिखायी नहीं देता।

समाधानः- दिखायी नहीं देता है तो स्वयं श्रद्धा करके अन्दर जाय, अपनेमें निर्णय करे। अमुक स्वभाव पहचानकर नक्की करे। सुख बाहर खोजता है, लेकिन सुख उसमें ही है। दिखायी नहीं देता है तो स्वयंको श्रद्धा नहीं है। परन्तु अंतरमें सुख है उसे स्वभावसे पहचान सके ऐसा है। ज्ञान है वह शान्तिरूप है और ज्ञानमें आनन्द है। और उसी मार्गसे अनन्त जीव मोक्ष पधारे हैं। उसीमें सुख है, सुख कहीं (नहीं है)। दिखायी नहीं देता है, परन्तु सुख उसमें है। बाहर कहाँ सुख दिखता है? बाहर कहीं नहीं दिखता, सुख मानता है। बाहर नहीं दिखायी नहीं देता, अंतरमें दिखायी नहीं देता। सुखकी इच्छा करनेवाला है, उसमें स्वयंमें सुख है। स्वयं नक्की करे।

चत्तारी मंगलं, अरिहंता मंगलं, साहू मंगलं, केवलिपणत्तो धम्मो मंगलं। चत्तारी लोगुत्तमा, अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलिपणत्तो धम्मो लोगुत्तमा।

चत्तारी शरणं पवज्जामि, अरिहंता शरणं पवज्जामि, सिद्धा शरणं पवज्जामि, केवली पणत्तो धम्मो शरणं पवज्जामि।

चार शरण, चार मंगल, चार उत्तम करे जे, भवसागरथी तरे ते सकळ कर्मनो आणे अंत। मोक्ष तणा सुख ले अनंत, भाव धरीने जे गुण गाये, ते जीव तरीने मुक्तिए जाय। संसारमांही शरण चार, अवर शरण नहीं कोई। जे नर-नारी आदरे तेने अक्षय अविचल पद होय। अंगूठे अमृत वरसे लब्धि तणा भण्डार। गुरु गौतमने समरीए तो सदाय मनवांछित फल दाता।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!
 