होकर देव होता है। भवका अभाव नहीं होता। देव तो अनन्त बार हुआ है। ऐसा देव अनन्त बार हुआ, पशु अनन्त बार हुआ, मनुष्य अनन्त बार हुआ, अनन्त बार सब हुआ, परन्तु भवका अभाव नहीं हुआ। उसी मार्गमें शुभभावमें रहा, परन्तु उससे मार्ग भिन्न है। आत्माको जाना नहीं, इसलिये अन्दरसे आत्मा प्रगट नहीं होता। अन्दरसे निरसता आनी चाहिये, अन्दरसे वैराग्य आना चाहिये। आत्माको पहचाननेके लिये प्रयत्न करे तो आत्मा प्राप्त होता है।
मुमुक्षुः- प्रथम भूमिकामें क्या करना चाहिये?
समाधानः- क्या करना? आत्माको (पहचानना)। सब निरस (है), ऐसा आत्मामें नक्की करना। आत्माकी ओर रुचि बढावे, आत्माकी ओर ... करे, सच्चा मार्ग क्या है, तो उस मार्ग पर जा सकता है। और आत्माकी ओरका प्रयत्न करे, श्रद्धा करे, प्रतीत करे, उसमें लीनता करे तो स्वानुभूति होती है।
समाधानः- ... अंतर आत्मामें.. गुरुदेवने जो कहा है, जो मार्ग दर्शाया है, वही मार्ग (है)। वांचन करना, शास्त्र-स्वाघ्याय करना। आत्मा अनन्त गुणोंसे भरपूरे है, उसे पहचाननेका प्रयत्न करना। उसके द्रव्य-गुण-पर्याय भिन्न, परवस्तु (के भिन्न)। शास्त्र- स्वाध्याय करे। पढनेमें जो आसान लगे वह पढना। भावना, जिज्ञासा रखनी। अन्दर विकल्प होते हैं वह भी अपना स्वभाव नहीं है, उससे आत्मा भिन्न है। आत्माका भेदज्ञान कैसे हो, स्वभाव और विभाव दोनों भिन्न चीज है, उसका भेदज्ञान हो। भेदज्ञान कैसे हो, उसके लिये लगनी लगानी, जिज्ञासा करनी।
आत्मा सर्वस्व है, बाहरमें कहीं भी सुख नहीं है। सब निःसार वस्तु है, सारभूत कोई नहीं है। (परिभ्रमण करते-करते) मनुष्यभव मुश्किलसे मिलता है। ऐसा मनुष्यभवमें ऐसे गुरुदेव मिले, ऐसा मार्ग मिला, घूटन-मनन करता रहे। सब स्वयंको ही करना रहता है। आत्माको लक्षणसे पहचानना कि आत्मा ज्ञान (स्वरूपी है)। ज्ञानको पहचाननेका प्रयत्न करना। ज्ञायक महिमावंत है। ज्ञायकमें सब भरा है।
मुमुक्षुः- संकल्प-विकल्प आते हैं, उसे छोडनेके लिये क्या करना?
समाधानः- उसे छोडनेके लिये, यह मेरा स्वरूप नहीं है, मैं तो आत्मा-शुद्धात्मा हूँ। जैसे सिद्ध भगवान हैं, वैसा मैं हूँ। .. स्वयं तो आत्माको पहचाने तब होता है, तबतक विचारकरके (नक्की करे कि), यह मेरा स्वरूप नहीं है, मैं उससे भिन्न हूँ। बारंबार उसका विचार करे। और अशुभसे बचने हेतु शुभभावमें विचार करे, अच्छे विचार करे। अच्छे विचार करनेमें रुकना वह भी शुद्धात्मा प्राप्त नहीं होत तबतक शुभभावमें रुकनेका प्रयत्न करे। मेरेमें नहीं है। विकल्पसे भिन्न अन्दर मैं शुद्धात्मा हूँ। परिणामको शास्त्रमें रोके, देव-गुरु-शास्त्र शुभभावमें रुके। अन्दर शुद्धात्मा निर्विकल्प वस्तु है, उसमें