Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

१३८ जानकर तृण समझकर चल देते हैं। आत्माकी साधना करनेके लिये, जो चैतन्यतत्त्व है उसे प्रगट करनेके लिये, उसकी साधना करके बारंबार स्वरूपमें लीनता करते-करते केवलज्ञानको प्रगट करते हैं। वह सुख कोई अपूर्व है, अनुपम है। आत्मा आश्चर्यकारी है, जिसे जगतकी कोई उपमा लागू नहीं पडती।

मुमुक्षुः- अज्ञानता हो तब आत्मा कैसे समझमें आये?

समाधानः- अज्ञानता हो तो भी समझमें आता है। गुरुदेवने मार्ग बताया है। देव-गुरु और शास्त्रकी... देव-गुरुकी शरणमें आत्मा समझमें आता है। अज्ञानता हो तो समझमें नहीं आये ऐसा नहीं है। अंतर जिज्ञासा करे और स्वयं समझनेका प्रयत्न करे और गुरु क्या कहते हैं उसका आशय समझे तो समझमें आये ऐसा है। स्वयं ही है, कोई अन्य नहीं है। जो पुरुषार्थ करे वह स्वयंको ही करना है। समझमें आये ऐसा है, नहीं समझमें आये ऐसा नहीं है।

ज्ञानसे भरा आत्मा ज्ञायक है। ज्ञायकमें क्या जाननेमें न आये? सब जाननेमें आता है, समझ सकता है। विभावको तोडकर, उससे भेदज्ञान करके आगे भी बढ सकता है। गुरुदेवने ऐसा मार्ग बताया और वह समझे बिना कैसे रहे? जिसने मार्ग प्राप्त किया वे पहले अज्ञानमें ही थे, बादमें ज्ञान प्राप्त किया है। अनादिका किसीको ज्ञान नहीं होता।

मुमुक्षुः- जो भगवान हुए वे भी हमारी जैसी अज्ञानदशामें थे?

समाधानः- सब स्वभावसे भगवान, परन्तु परिणतिमें तो अज्ञानता थी। इसलिये जो प्रगट करते हैं, सब पुरुषार्थसे ही करते हैं।

मुमुक्षुः- हम भी भगवान हो सकते हैं?

समाधानः- भगवान हो सकते हैं। स्वभावसे भगवान ही है, क्यों नहीं हो सकता? पुरुषार्थ करे तो। भगवानको पहचाने, भगवानको देखे, भगवानकी महिमा करे, भगवान- चैतन्य भगवानका बारंबार रटन करे। चैतन्य भगवानकी भक्ति करे तो वह चैतन्य भगवान प्रसन्न हुए बिना नहीं रहता। स्वयं भगवान हो सकता है।

मुमुक्षुः- पहले बहुत पुण्य कर ले, तपश्चर्या कर ले, बादमें भगवान बन सकते हैं न। भगवान तो बहुत बडे हैं। अपने तो पुण्य एवं तपश्चर्या करनी चाहिये न।

समाधानः- पुण्य और तपश्चर्या करनी, परन्तु बिना समझे आगे कैसे बढे? ऐसी ही बिना समझे चला करे, भावनगर जाना है, लेकिन भावनगर किस रास्ते आया, उस रास्तेको जाने बिना, बिना समझे ही इस ओर धोळाके रास्ते पर चला जाय तो भावनगर नहीं आ जाता। जाने बिना मार्ग कैसे काटे? यथार्थ सत्य जाने बिना, समझे बिना मात्र अकेली तपस्या करनेसे मार्ग प्राप्त नहीं होता, आत्मा समझमें नहीं आता।