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जाता है। फिर उसे कषायोंकी मन्दता हो, अशुभभावसे बचनेको शुभभाव आये, उसकी
यथाशक्ति तप आदि हो, परन्तु वह तप, सच्चा तप तो आत्माको पहचाने तब होता
है। आत्माको पहचाने बिना सच्चा तप नहीं हो सकता।
जिसे आत्माकी रुचि लगे, उसे कषायोंकी मन्दता होती है। लेकिन वह तप करे तो आत्मा समझमें आये ऐसा नहीं होता। समझे बिना चलता रहे पहचान किये बिना कि आत्मा कौन है? वह क्या वस्तु है? उसका स्वभाव क्या है? यह विभाव क्यों अनादिका है? उससे कैसे छूटा जाय? यह सब ज्ञान किये बिना आगे नहीं बढ सकता।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- गुरुदेवने महान उपकार किया है। गुरुदेवने तो चारों ओरसे वस्तुका स्वरूप समझाया है। किसीको शंका रहे ऐसा नहीं है। दुःख तो बाहरसे दुःख मान लिया है। अंतरका दुःख है, अन्दर परिणतिमें विभाव परिणतिका दुःख है। ऐसी अंतरकी दृष्टि गुरुदेवने बतायी है।
सत्य तो गुरु बिना ज्ञान नहीं हो सकता। निमित्त-उपादानका सम्बन्ध है। अनादिसे सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं करता है। जब भी वह प्राप्त करता है तब देव अथवा गुरुकी वाणी मिले तब उसका उपादान तैयार होता है। पुरुषार्थ स्वयंका है, लेकिन ऐसा निमित्त- उपादानका सम्बन्ध है। अनादिसे समझा नहीं, गुरुकी वाणीसे समझमें आता है। पुरुषार्थ करे, स्वयं पुरुषार्थ करे तो आगे जाता है।
मुमुक्षुः- ... हे भगवती माताजी! आजके मंगल दिन आपके मंगल वचनोंका हम सबको लाभ मिले, इस हेतुसे आपको नम्र भावसे एक प्रश्न आपके समक्ष प्रस्तुत करते हैं, उसकी स्पष्टता करनेकी कृपा कीजिये।
आत्मा परमानन्द स्वरूप है, सिद्ध स्वरूप है, ऐसा पूज्य कृपालु गुरुदेव फरमाते थे और शास्त्रमें भी आचायाने भगवानकी वाणी अनुसार ऐसा आत्माका स्वरूप बताया है। तो आत्माका सिद्ध स्वरूप और परमात्म स्वरूप कैसे समझमें आये और उसकी प्राप्ति कैसे हो, यह माताजी! आपके मंगल वचनों द्वारा समझानेकी हम पर कृपा कीजियेजी।
समाधानः- आत्माका परमात्म स्वरूप है। गुरुदेवने तो बहुत स्पष्ट करके समझाया है। यह आत्मा कैसा है? आत्मा सिद्ध स्वरूप है। गुरुदेवने स्पष्ट करके समझाया है, सबको जागृत किया है और स्वयं पुुरुषार्थ करे तो हो सके ऐसा है। गुरुदेवने समझाया है, मैं तो उनका दास हूँ। उनके पास सब (समझा है)।
गुरुदेवने कहा है, आत्मा परमात्म स्वरूप है, सिद्ध भगवान जैसा है। प्रभुत्व शक्तिवाला है। वह आत्मा स्वयं समझे तो हो सके ऐसा है। जैसे गुण सिद्ध भगवानमें हैं, वैसे