Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

१४० ही गुण आत्मामें हैं। सिद्ध भगवानमें केवलज्ञान, केवलदर्शन, चारित्र आदि है। ऐसे गुण शक्तिरूप प्रत्येक आत्मामें है। उसमें सहज ज्ञान, दर्शन, चारित्र, केवलज्ञान शक्तिरूप है। केवलदर्शन शक्तिरूप, चारित्र शक्तिरूप, आनन्द शक्तिरूप सब गुण शक्तिसे भरपूर भरे हैं। उसमेंसे एक भी कम नहीं हुआ है।

अनन्त काल गया, अनन्त भव हुए, निगोदमें गया और चारों गतिमें भटका तो भी आत्मा तो वैसाका वैसा सिद्धस्वरूप ही है, द्रव्यदृष्टिसे। परन्तु वह पहचानता नहीं है। दृष्टि बाहर है इसलिये आत्माको पहचानता नहीं है। उसे भ्रान्ति हो गयी है। आत्माको पहचाने तो हो सके ऐसा है। आत्मा सिद्ध भगवान जैसा है।

मैं एक, शुद्ध, सदा अरूपी, ज्ञानदृग हूँ यथार्थसे,
कुछ अन्य वो मेरा तनिक परमाणुमात्र नहीं अरे! ३८.

मैं एक शुद्ध स्वरूपी आत्मा हूँ। चाहे जितने भव किये तो भी आत्मा एकरूप रहा है। अनेक प्रकारके विभाव हुए तो भी शुद्धतासे भरा शुद्धात्मा द्रव्य वस्तु है। विभावका भी अन्दर प्रवेश नहीं हुआ है। कोई भवस्वरूप भी आत्मा नहीं है। अनेक स्वरूप भी आत्मा नहीं हुआ है। ऐसा आत्मा शुद्ध स्वरूपी एकरूप आत्मा, ऐसा आत्मा कोई वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श रूप नहीं हुआ है। आत्मा अरूपी है, उसमें कोई वर्ण, गन्ध, रस आदि नहीं है। ऐसा आत्मा अरूपी आत्मा है। ज्ञान, दर्शनसे भरपूर भरा है और कोई अद्भुत वस्तु है।

कोई अन्य परमाणु मात्र भी आत्माका स्वरूप नहीं है। आत्मा अपनी प्रताप संपदासे भरा है। उसमें उसकी प्रताप संपदा अनन्त-अनन्त भरी है, लेकिन वह उसे पहचानता नहीं है। उसे पहचाने, उस पर दृष्टि करे, उसका विचार करे, उसकी जिज्ञासा करे कि यह विभाव है वह मैं नहीं हूँ, लेकिन यह ज्ञानस्वरूप ज्ञायक सो मैं हूँ। ज्ञान, असाधारण लक्षण उसका ज्ञान है, उस ज्ञान द्वारा पहचानमें ऐसा है। परन्तु अनन्त गुणोंसे भरा अत्यंत महिमावंत अत्यंत विभूतसे भरा आत्मा है। उसका ज्ञान, उसके लक्षण द्वारा पहचानमें आता है।

विभावका स्वाद आकुलतारूप है और आत्माका स्वाद शान्ति, आनन्द रूप है। उसका स्वादभेद है, उसका लक्षणभेद है। उसका भेदज्ञान करके पहचाने। अनन्त कालसे एकत्वबुद्धि हो रही है। उसका बारंबार अभ्यास करके मैं भिन्न चैतन्य सिद्ध भगवान जैसा आत्मा हूँ। बारंबार अभ्यास करे तो पहचानमें आये।

जो गुरुने कहा, जिनेन्द्र, गुरु, शास्त्रमें आता है, उसे वह स्वयं विचार करके नक्की करे। गुरुने, जो वचन गुरुदेवने कहे, उन वचनोंको प्रमाण करके स्वयं विचार करके अंतरमें निर्णय करे। देव-गुरु-शास्त्रकी भक्ति और अंतरमें ज्ञायकदेवकी भक्ति, ज्ञायककी