Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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आकुलतारूप-दुःखरूप है। विभावका लक्षण जाने, ज्ञानका लक्षण जाने। ज्ञान और विभावका
लक्षण जानकर भिन्न पडे। भिन्न पडनेकी तैयारी.. अन्दर लगनी लगे, उसे विरक्ति आये,
स्वभावमें कहीं चैन न पडे, स्वभावकी महिमा आये तो होता है।

भेदज्ञान करनेके लिये स्वभावकी महिमा (आनी चाहिये)। विभावसे वैराग्य आये, प्रत्येक विभावके प्रसंग हो उससे वैराग्य, विभाव परिणतिसे वैराग्य, सबसे वैराग्य आवे और आत्माकी महिमा लगे और तत्त्वका विचार करके प्रयोजनभूत ज्ञान करे तो आगे जाय। ज्यादा जाने तो जाय ऐसा नहीं, प्रयोजनभूत ज्ञान तो होना चाहिये।

मुमुक्षुः- भेदज्ञान प्राप्त करनेके लिये ज्ञानीका सान्निध्य कुछ विशेष नहीं कर सकता?

समाधानः- ज्ञानीका सान्निध्य करे, लेकिन अंतरमें आश्रय स्वयंको लेना चाहिये। निमित्त तो प्रबल है। उनका सान्निध्य तो लाभका कारण है और उससे आगे जा सकता है। लेकिन वह सान्निध्य लेनेवाला स्वयं अंतरमेंसे सान्निध्य ले तो हो सकता है।

मुमुक्षुः- अंतरमेंसे सान्निध्य लेनेके लिये ध्यानमें ऊतरना जरूर है?

समाधानः- अन्दर सान्निध्य लेनेमें उतनी लगनी लगनी चाहिये। अंतरमें, बस, बाकी सब निःसार लगे तो होता है। ज्ञानीका सान्निध्य मिले... जो ज्ञानीने प्राप्त किया वह मुझे कैसे प्राप्त हो? उसे स्वयंको लगनी लगनी चाहिये। सब रस छूटकर ज्ञानीके चरणमें (जाये), मुझे कुछ नहीं चाहिये। मुझे एक आत्मा चाहिये। ऐसी अन्दरमें लगे तो हो सकता है।

और ज्ञानी जो कहते हैं, वह क्या कहते हैं? उसका आशय ग्रहण करनेके लिये अपनी उतनी तैयारी और उसका विचार करे तो उसे सच्चा ज्ञान हो। सच्चे ज्ञानके बिना आगे नहीं जा सकता। लेकिन सच्चा ज्ञान। रूखा ज्ञान नहीं, अपितु सच्चा-अन्दर हृदय भीगा हुआ हो और जो ज्ञान हो, वह कार्य करता है। ज्ञानीका सान्निध्य लाभका कारण है। लेकिन स्वयं अन्दर ग्रहण करके ऐसी लगनी लगाये, ज्ञानीके चरणमें (जाये), ज्ञानी जो कहे वह स्वयं अन्दर ग्रहण करता जाय, तो होता है।

मुमुक्षुः- सच्चा ज्ञान माने मैं स्वयं स्व। उसमें अनुभूति-अनुभवका सातत्य नहीं रहता...

समाधानः- उसका कारण? वह सतत नहीं रहता है, उसका कारण अपने पुरुषार्थकी मन्दता है। अनादिका अभ्यास है इसलिये उसमें दौडा जाता है। दौड अनादि कालकी है। उसके अनुपातमें स्वयं इस ओर स्वभावकी ओर उतनी दौड नहीं लगाता। बारंबार, बारंबार... छूट जाय तो भी बारंबार,.. जो ज्ञानीने कहा, उसका रहस्य ग्रहण करनेके लिये उस अनुसार परिणति करनेके लिये स्वयं बारंबार प्रयास नहीं करता है, तो कहाँ- से हो? वह तो छूट जाता है। बारंबार प्रयास करना चाहिये।