Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

१४८

जो ज्ञानीने कहा हो, उसका रहस्य हृदयमें ऊतारनेके लिये बारंबार अपने पुरुषार्थकी दौड लगाता नहीं। तो कहाँ-से हो? बारंबार एकत्वबुद्धिमें चला जाता है। शरीर, विभाव आदि सबमें एकत्व होता है, तो बारंबार उससे (भिन्न पडनेका) प्रयास करे तो होता है। अपने नेत्रकी आलसके कारण हरिके दर्शन नहीं किये। अपने नेत्रकी आलसके कारण स्वयं हिरको निरखता नहीं, देखता नहीं है। अपना कारण है।

मुमुक्षुः- ब्रह्मनाद उस विषयमें कुछ कहिये। स्वज्ञानमें कितना...?

समाधानः- ब्रह्मनाद, वह नाद कोई आवाज नहीं है। ब्रह्म स्वरूप आत्मा ही है। ब्रह्म स्वरूप आत्मा स्वयं अंतरमें जाय, स्वयं अपने स्वरूपको वेदे-स्वानुभूति करे वह ब्रह्मनाद है। नाद कोई बाहरसे आवाज नहीं आती। आवाज आये वह तो पुदगलकी आवाज है। ब्रह्मनाद यानी ब्रह्मका अंतरसे वेदन हो, स्वानुभूति-अपना अनुभव हो, उसका नाम ब्रह्मनाद है। नाद यानी बाहरकी आवाज नहीं है, चैतन्यकी आवाज है। वह कोई कर्णसे सुननेकी आवाज नहीं है। उसका वेदन हो वह उसका ब्रह्मनाद है।

मुमुक्षुः- बाहरसे तो आता ही नहीं है, अन्दरसे आता है। समाधानः- परन्तु नाद शब्द यानी वह सुननेका नहीं है, वह तो वेदन है। स्वरूपका कोई अपूर्व, अनुपम, जिसके साथ किसीकी उपमा नहीं लागू पडती है, ऐसा जो चैतन्यका ब्रह्म स्वरूप, उस ब्रह्म स्वरूपकी अनुभूति... अनन्त स्वभाव, अनन्त गुणोंसे भरा हुआ जो अचिंत्य है, जो कल्पनासे अतीत है, उसकी जो अनुभूति है वह ब्रह्मनाद है। उसमें विकल्प छूटकर जो आत्माकी अनुभूति होती है, वह ब्रह्मनाद है।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!
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