१५० भगवान कहलाते हैं। जो भगवानको जाने वह स्वयंको जानता है, ऐसा कहनेमें आता है। केवलज्ञान हुआ तो भगवान बन गया।
मुमुक्षुः- वह व्यवहारिक कायामें नहीं आ सकते।
समाधानः- व्यवहारिक कायामें नहीं आते। शरीरधारी होते हैं, लेकिन स्वरूपमें लीन होते हैं। वाणी छूटती है तो बिना इच्छाके छूटती है, सहज छूटती है। व्यवहार कायामें नहीं आते। उनकी नासाग्र दृष्टि होती है। किसीके सामने देखते नहीं, अंतरमें लीन रहते हैं। उनकी चाल अलग होती है, उनके वाणी अलग होती है। सब अलग होता है। स्वरूपमें ही रहते हैं। बोलनेमें अलग लगे, इस जगतसे अलग है। चाल अलग होती है। निरिच्छासे सहज चलते हैं। वह अलग ही होता है। वे भगवान कहलाते हैं।
मुमुक्षुः- भगवान और यह जगत, दोनों भिन्न वस्तुएँ हैं, या दोनों एक ही है?
समाधानः- भिन्न है। भगवान और यह सब वस्तु, जगतमें तो अनन्त वस्तुएँ हैं। चैतन्य भगवान तो भिन्न है, वह वस्तु भिन्न है। भगवान और वस्तु एक नहीं हो जाते।
मुमुक्षुः- तो पूरा जगत भगवानका या किसी अन्यका?
समाधानः- ... जगत जगतका है और भगवान भगवानके हैं। जगत अनादिअनन्त है।
मुमुक्षुः- अथवा भगवान जगतमें आते हैं?
समाधानः- भगवान जगतमें आते नहीं, भगवान जगतसे भिन्न हैं।
मुमुक्षुः- जगतके अन्दर जो जीव हैं, वह भगवानमें तो जाते ही हैं।
समाधानः- भगवान यानी जगतकी एक वस्तु कहलाती है। जगतके भगवान कहलायें, परन्तु भगवान और जगत एक नहीं हो जाते। भगवान भिन्न रहते हैं, वस्तु भिन्न रहती है। भगवान, जगत यानी भगवान लोकमें है। परन्तु भगवान और जगत एक नहीं हो जाते। भगवान अंतरमें तो अलौकिक दशामें हैं।
मुमुक्षुः- ज्ञानीको ऐसा लगता होगा, जगत और...
समाधानः- भिन्न है।
मुमुक्षुः- उन्हें भी भिन्न लगता है?
समाधानः- हाँ, भगवानको भिन्न लगता है। जगत और भगवान, दोनों भिन्न है। विकल्प ही नहीं है, परन्तु भिन्न हैं। भगवान स्वयं अपने वेदनमें हैं। जगतको भगवान नहीं वेदते, भगवान उससे भिन्न है।
मुमुक्षुः- वाणी छूटती है, वाणी, वाणी तो .. मेंसे छूटती होगी या ऐसे ही?
समाधानः- भगवानको कोई विकल्प नहीं है। वह तो सहज छूटती है। लोकके पुण्यसे छूटती है। भगवानको इच्छा नहीं है कि इन सबका हित करुँ और उपदेश