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समाधानः- ... आत्मा शब्द बोलना नहीं आता था। गुरुदेवने सब ...
मुमुक्षुः- हम तो बाहरसे आये हैं, हमने यह सब सुना.. जो कुछ है वह गुरुदेव और आपके (प्रतापसे है)।
समाधानः- गुरुदेवके प्रतापसे तो इतने तैयार हो गये हैं। गुरुदेवके प्रतापसे इतने संस्कार.. वहाँ तो सब कितने... कोई पारसी, कोई व्होरा, कैसे भाववाले थे।
आत्मा आश्चर्यकारी पदार्थ है। जगतमें ऐसा कोई आश्चर्य नहीं है। जगतमें कोई दूसरा आश्चर्य माने कि यह तो कोई अदभुत है, यह देखनेका अदभुत है, देखनेका कोई प्रदर्शन हो तो कहे, यह आश्चर्यरूप है, किसीका मकान या महेल आश्चर्यरूप है या कोई वस्तु आश्चर्यरूप है। जगतमें कुछ भी आश्चर्य नहीं है।
आश्चर्यकारी तत्त्व हो तो आत्मा ही है। आत्मामें ऐसी अदभुतता भरी है कि जिसका वाणीसे कथन नहीं हो सकता। ऐसी अदभुत और आश्चर्यकारी तत्त्व (है)। एक जो ज्ञान है, वह ज्ञान एक समयमें सब जान सकता है। फिर भी उसे वजन लगे नहीं, बोज नहीं लगे, स्वयं स्वरूपमें लीन रहे, बाहर उपयोग रखने नहीं जाते। अपने स्वरूपको जानते रहे, स्वरूपमें ही लीन रहे, स्वरूपसे बाहर नहीं जाते। तो भी सहज इच्छा बिना सब एक समयमें जिसमें ज्ञात हो जाता है। ऐसा जिसका ज्ञानका स्वरूप अदभुत!
उसका आनन्दका स्वरूप अद्भुत! कि जिस आनन्दको जगतके साथ कोई मेल नहीं है। कोई उसके साथ मेल करे तो उसके साथ मेल नहीं आता। ऐसा आनन्दका स्वरूप है। जो एक समयमें भूतकालके, वर्तमान और भविष्यके अनन्त-अनन्त पदार्थ, उसके द्रव्य-गुण-पर्याय अनन्त, वह सब एक समयमें ज्ञात हो, वह आत्माका ज्ञान कोई अदभुत है। और उसका आनन्द भी आश्चर्यकारी है। जो अनन्त गुणसे भरा आत्मा आश्चर्यकारी तत्त्व है कि जो तर्कमें आये नहीं, युक्तिमें आये नहीं, कोई दृष्टान्तमें आवे नहीं। उसे समझनेके लिये दृष्टान्त भी होते हैं, युक्ति भी होती है, उसे समझनेके लिये। वह सब होता है। उसके लक्षण द्वारा पहजाना जाता है। तो भी उसका जो मूल स्वानुभूतिका स्वरूप है, वह बाहरसे किसी भी प्रकारसे वचनमें बता नहीं सकते। कोई दृष्टान्तसे