या कोई वाणीसे या कोई उपमासे बताया नहीं जाता। इसलिये आत्माका स्वरूप कोई अद्भुत एवं आश्चर्यकारी है।
जगतमें आश्चर्यकारी तत्त्व हो तो दूसरा कुछ नहीं है। देवलोकके देव आश्चर्यकारी (नहीं है), देवलोकके महेल आश्चर्यकारी नहीं है या चक्रवर्तीकी विभूती आश्चर्यकारी नहीं है। लेकिन एक आत्मा ही जगतमें आश्चर्यकारी है और यदि उसकी आश्चर्य, अद्भुतता एवं महिमा आवे तो जीव वापस मुडकर उसे खोजनेके लिये, उसे प्रगट करनेके लिये प्रयत्न करता है।
वह लक्षणसे पहचाना जाय ऐसा है। ज्ञानलक्षण उसका असाधारण है। इसलिये ज्ञानसे पहचाना जाय ऐसा है। लेकिन उसका अनन्त गुणसे भरपूर अद्भुत स्वरूप, उसकी स्वानुभूतिमें जाय और अन्दर समाये तो पहचाना जाय ऐसा है। भेदज्ञान द्वारा और अन्दर स्वभावको पहचाननेसे वह प्रगट हो सके ऐसा है। इसीलिये कहनेमें आता है न कि तू दूसरा सब आश्चर्य छोड दे। बाहरका कुछ भी आश्चर्य (नहीं है)। बाहर देखनेका आश्चर्य नहीं है, परन्तु अंतरमें तू तुझे देखे। उसीमें सब आश्चर्य भरा है। उपदेश द्वारा, उपदेश देकर आत्माका स्वरूप बताया है। और वही करने जैसा, वास्तविकरूपसे तो वही है और ध्येय एक ही होना चाहिये, शुद्धात्मा कैसे प्रगट हो। जबतक प्रगट न हो तबतक यह सब शुभभावमें देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा आदि होती है और अन्दर शुद्धात्मा कैसे प्रगट हो, यह ध्येय होता है।
मुमुक्षुः- सच्चा मुमुक्षु है वह महेनत भी करता है, लेकिन ऐसी कोई ज्ञानकला है कि जो अभी हमें नजरमें-लक्ष्यमें नहीं आती। प्रेक्टिकली बता सकते हो? ... वह सब तो बहुत सुना, सब मुमुक्षु प्रयत्न भी कर रहे हैं, फिर भी ऐसी कोई ज्ञानकला है कि जो सामान्य मुमुक्षुके लिये असाध्य है।
समाधानः- प्रयत्न करते हैं, लेकिन प्रयत्नमें क्षति है। ज्ञानकला, ज्ञान ज्ञानको पहचान सकता है। उसे तो गुरुदेवने वाणीमें बहुत समझाया है। गुरुदेव कुछ गुप्त नहीं रखते थे। वे तो जितना स्पष्ट हो सके उतना स्पष्ट कर-करके समझाते थे। ज्ञानकी कला तो अंतरमें स्वयं ज्ञानसे ज्ञानकी कला स्वयं प्रगट कर सकता है। मुमुक्षुका अन्दरका भाव और जोश, उसका जोश ही उसका मार्ग कर देता है। दूसरा कोई मार्ग नहीं करता, मार्ग गुरुदेव बताते हैं। गुरुदेवने मार्ग बहुत स्पष्ट किया है। लेकिन अंतरमें स्वयंका जोश और स्वयंकी तमन्ना हो तो वह स्वयंके पुरुषार्थसे ही मार्ग निकलता है। बाहरसे नहीं हो सकता।
ज्ञानकी कला अन्दरमें स्वयं ही प्रगट कर सकता है। ज्ञानस्वरूप सो मैं, यह बोलनेमें आये, लेकिन अन्दर कैसे प्रगट करना वह स्वयंको बाकी रह जाता है। वह सब स्थूलतासे