१५८ करता है कि मैं ज्ञान हूँ, ज्ञान हूँ। लेकिन अन्दर ऊतरकर अन्दर जो स्वयंको उत्साह आना चाहिये और ज्ञान ही मैं, ऐसा दृढ निश्चय करके निःशंकतासे ज्ञानरूप-ज्ञायकतारूप स्वयंको परिणमना चाहिये, वह करता नहीं है इसलिये उसकी भेदज्ञान कला प्रगट नहीं हो रही है। "भेदविज्ञान जग्यौ जिन्हके घट'। वह भेदज्ञानकी कला स्वयं ही प्रगट नहीं करता है। अन्दर जिसे लगी हो उसे ही प्रगट होती है। अन्दर सहीरूपसे लगी ही नहीं है और सही प्रयत्न करता ही नहीं है। लगे तो प्रगट हुए बिना रहता नहीं। अपना स्वभाव है, प्रगट न हो ऐसा बनता ही नहीं। स्वयं ही है, स्वयंसे कोई दूर नहीं है। स्वयं ही है और स्वयंके समीप ही है। परन्तु स्वयंको लगी नहीं है, अन्दर सही रूपमें पानी पीनेकी प्यास लगे तो वह पानीको खोजे बिना रहता ही नहीं। अन्दर खरी लगी ही नहीं है। स्वयं आत्मा ही है न। न समझमें आये ऐसा नहीं है। विचार करके स्वभावको बराबर विचारसे नक्की करे तो समझमें आये ऐसा है। जिज्ञासासे, लगनीसे।
... होता है तब जीव एकदम चला जाता है, कुछ मालूम नहीं पडता। आत्मा भिन्न है, आत्मा एकदम चला जाता है। मनुष्यजीवनमें जो आत्माका किया होता है, वह अपना है, बाकी शरीर और आत्मा भिन्न है। मरण होता है तब तो आत्मा एकदम चला जाता है। गति करके चला जाता है। जबतक आयुष्य होता है तबतक रहता है, बाकी चला जाता है। दूसरा भव धारण करता है। जो भाव यहाँसे लेकर गया हो उसके अनुसार भव धारण करता है। परन्तु भवका अभाव करनेका मार्ग गुरुदेवने बताया है। वही मार्ग ग्रहण करे तो भवका अभाव हो। इस जन्म-मरणसे छूट जाय। जन्म-मरण करते-करते अनन्त कालसे ऐसे जन्म-मरण करता रहता है। उसमें कोई उपाय नहीं रहता है। चाहे जितने उपाय करे तो भी वह काम नहीं आते। ये तो एकदम चले गये। बाकी कोई उपाय करे तो भी कुछ काम नहीं आता। जब आयुष्य पूर्ण होता है, तब एकदम जीव चला जाता है। उसमें आत्माका करे।
गुरुदेवने भवका अभाव होनेका मार्ग बताया। अनन्त कालमें ऐसे गुरुदेव मिले, मिलना मुश्किल है। पंचमकालमें मिले और भवका अभाव होनेका मार्ग बताया। वह मार्ग ग्रहण करने जैसा है। बस, सबको वही करने जैसा है। जो उन्होंने किया वही सबको करना है। मनुष्य जीवनमें आत्मा कैसे पहचानमें आया? शाश्वत आत्मा है उसकी शरण ग्रहण करे तो भवका अभाव होता है। शुभभावमें देव-गुरु-शास्त्रका शरण और अन्दर आत्माका शरण ग्रहण करना, जीवनमें वही श्रेयभूत है।
समाधानः- ... और वही यथार्थ जिनशासन है। जिसने आत्माको जाना उसने सब जाना। एक आत्माको जाननेसे सब जान लेता है। उसमें पूरा मुक्तिका मार्ग आ जाता है। अबद्धस्पृष्ट आत्माको जाना। आत्मा बन्धा नहीं है, आत्मा किसीसे स्पर्शित