Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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नहीं है। कमलकी भाँति अलिप्त है। वस्तु स्वभावसे आत्मा सर्व प्रकारसे उसे कोई
विभाव लागू नहीं पडता। वस्तु स्वभावसे वह शुद्ध है। ऐसे शुद्धात्माको जिसने जाना।
पर्यायमें होता है, पर्यायका उसे ज्ञान होता है। उसकी साधना तैयारी होती है। द्रव्य
पर दृष्टि करके अन्दरसे स्वानुभूतिकी दशा प्रगट होती है। वह सत्य जिनशासन कहनेमें
आता है। सत्य जिनशासन उसे ही कहते हैं।

मुमुक्षुः- आपने तो बहुत स्पष्टीकरण करके समझाया..

समाधानः- सब समझाया है, गुरुदेवने पूरा मार्ग प्रकाशित किया है। गुरुदेवने जो वाणी बरसायी है, वह कोई अपूर्व है। और गुरुदेवके ही सब भक्त हैं। गुरुदेवने जो कहा है वही सबको कहना है। गुरुदेवका परम उपकार है। गुरुदेवने ही सब समझाया है।

मुमुक्षुः- दूसरा एक छोटा प्रश्न है, प्रमाणज्ञानके अंशको नय कहते हैं और नयज्ञान त्रिकालको प्रगट हुयी शुद्धिको एवं अशुद्धिको जानता है। वह ज्ञानका स्वपरप्रकाशकपना है या स्वपरप्रकाशक कारण?

समाधानः- स्वपरप्रकाशक ही है, उसका स्वभाव ही स्वपरप्रकाशक है। स्वपरप्रकाशका कारण नहीं होता। स्वपरप्रकाशक ज्ञान तो स्वपरप्रकाशक ही है। प्रमाणज्ञान है वह स्वपरप्रकाशक है। और उसमें नय तो एक अंश है। नय है वह स्वयं ज्ञानका एक अंश है। दृष्टि द्रव्य पर रहती है और साथमें जो ज्ञान है वह ज्ञान स्वको, परको सबको जानता है। ज्ञान स्वयंको जानता है, ज्ञान परको जानता है, ज्ञान बाह्य ज्ञेयोंको जानता है, ज्ञान विभावको जानता है, ज्ञान स्वभावको, अनन्त गुणोंको, ज्ञान सबको जानता है। ज्ञान स्वयं स्वपरप्रकाशक ही है। स्वपरप्रकाशकका कारण नहीं है।

मुमुक्षुः- वाह! बहुत सुन्दर! अलौकिक!! मुमुक्षुः- .. पर्याय गौण होती है, उस वक्त पर्याय होती है क्या? यह कृपा करके समझाइये।

समाधानः- स्वसन्मुख होता है तब? द्रव्य मुख्य ही होता है। द्रव्य पर दृष्टि होती है। द्रव्य मुख्य और पर्याय गौण होती है। पर्याय कहीं चली नहीं जाती। पर्याय तो होती है। स्वानुभूतिमें भी पर्याय है। स्वानुभूतिमें पर्याय चली नहीं जाती। पर्यायका तो वेदन होता है और द्रव्य पर दृष्टि होती है। पर्याय गौण होती है, लेकिन पर्यायका वेदन होता है, पर्याय चली नहीं जाती। ज्ञानमें दोनों है। वस्तु और पर्याय दोनों ज्ञानमें (रहते हैं)। दृष्टिमें पर्याय गौण होती है, पर्याय चली नहीं जाती, पर्यायका नाश नहीं हो जाता। पर्याय होती है।

मुमुक्षुः- हे माता! पूज्य गुरुदेवश्री तथा आप बारंबार ज्ञायक शुद्धात्माकी महिमा समझाते हो। हमें सुनते समय ज्ञायककी महिमा आती है, परन्तु हमारा झुकाव ज्ञायक