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स्वानुभूति करते-करते ऐसे लीन हो जाते हैं कि आत्माकी लीनतामें ऐसी उनकी श्रेणी हो जाती है, जिसे क्षपण श्रेणि कहते हैं, ऐसे लीन हो जाते हैं। कर्म अपनेआप ही क्षय होने लगते हैं। इसलिये क्षपक श्रेणि (कहते हैं)। कर्म इसप्रकार क्षय होते हैं कि फिरसे उदय ही नहीं आता। कर्म इसप्रकार क्षय होते हैं और अन्दरसे श्रेणि ऐसी चढते हैं कि वापस ही नहीं आते। स्वानुभूतिमें ऐसे लीन हो जाते हैं कि वापस नहीं आते और लीनतामें ही स्वानुभूतिमें लीन होकर केवलज्ञान प्राप्त करते हैं। अर्थात पूर्ण हो जाते हैं। वीतरागदशा। क्षपक श्रेणीमें ऐसे चढ जाते हैं कि उसके फलमें केवलज्ञान प्राप्त हो जाता है और आत्मामें लीन हो जाते हैं।
केवलज्ञान अर्थात समस्त लोकालोकको जाने और आत्माको जाने, सबको जाने ऐसा ज्ञान प्राप्त होता है और अन्दर अपनी स्वानुभूतिमें लीन रहे। बाहर नहीं आते। उन्हें जाननेकी इच्छा भी नहीं होती, सहज जाननेमें आ जाये, ऐसा आत्माका स्वभाव है। आत्माका अपूर्व आनन्द प्राप्त होता है, आत्माका ज्ञान प्राप्त होता है, पूर्ण ज्ञान प्राप्त होता है। आत्मज्ञान तो गृहस्थाश्रममें प्राप्त हुआ है, परन्तु केवलज्ञान हो जाता है। ऐसी क्षपक श्रेणी (है)। ऐसी श्रेणी चढते हैं कि फिर बाहर ही नहीं आते। लीन हो गये तो हो गये। ऐसा केवलज्ञान प्राप्त हो जाता है। आत्माके आनन्दमें... आता है न? "सादि अनन्त अनन्त समाधिसुखमां', बस! समाधि सुखमें अनन्त काल तक (रहते हैं)।
मुमुक्षुः- तभी वीतरागता पूर्ण..
समाधानः- हाँ, क्षपक श्रेणी चढनेके बाद वीतराग (होते हैं)। "क्षपण श्रेणी करीने आरूढता...' आता है।
मुमुक्षुः- द्रव्य-गुण-पर्यायका स्वरूप कैसा है?
समाधानः- द्रव्य-आत्मा एक वस्तु है। जैसे यह पुदगल वस्तु है, वैसे आत्मा एक वस्तु है। उसका मुख्य गुण है कि सबको जाने। सबको जाने यानी उसका जाननेका स्वभाव है। वह ज्ञेयको जाननेवाला ही है। यह जड वस्तु कुछ नहीं जानती, वैसे आत्मा सबको जाने ऐसा उसका स्वभाव है। जाननेवाली एक वस्तु है। वह उसका गुण है। उसमें अनन्त गुण हैं। जैसा ज्ञान है, वैसा आनन्दगुण है, वैसे अनन्त गुण हैं। अस्तित्व, वस्तुत्व आदि (सामान्य गुण है)। ज्ञान जाननेका कार्य करे, आनन्द आनन्दका कार्य करे, शांति शांतिका कार्य करे, ऐसे कार्य करे उसे पर्याय कहते हैं।
समाधानः- ... सम्यग्दर्शन आत्माका गुण है और वह आत्मामें है। बाहरसे नौ तत्त्वकी श्रद्धा करनी ऐसा आता है। जैनदर्शन-स्थानकवासी, देरावासी सबमें आता है। नौ तत्त्वकी श्रद्धा करे उसे सम्यग्दर्शन, ऐसा आता है। शास्त्र पढे यानी ज्ञान (हो गया)।