मुमुक्षुः- ..
समाधानः- जगतमें जिन प्रतिमा, भगवान जो साक्षात समवसरणमें विराजते हों, वह ध्यानमय (मुद्रा), आत्मामें लीन हो गये हो, ऐसा उनका दिखाव होता है। उनकी वाणी भिन्न होती है, वे भिन्न हैं। तो साक्षात भगवान तो विराजते नहीं हैं, इसलिये श्रावक भगवानके दर्शन हेतु जिन प्रतिमाकी स्थापना करते हैं।
जगतमें शाश्वत प्रतिमाएँ हैं। जो देवलोकमें, मेरुमें, नंदीश्वरमें सब जगह शाश्वत, किसीके द्वारा किये बिना, पुदगलके परमाणु प्रतिमारूप इकट्ठे हो गये हैं। रत्नमय प्रतिमाएँ पाँचसौ- पाँचसौ धनुषकी, जैसे समवसरणमें विराजते हों, वैसी प्रतिमाएँ। मात्र वाणी नहीं। मानो बोले या बोलेंगे, हूबहू भगवान जैसा लगे। कुदरत ऐसा कह रह है कि जगतमें भगवान सर्वोत्कृष्ट हैं। कुदरत भी भगवानकी प्रतिमारूप परिणमित हो गयी है। जगतमें सर्वोत्कृष्ट हो तो भगवान हैं। आत्मा तो शक्तिरूप स्वयंको पहचानना है। आत्मा सर्वोत्कृष्ट है, लेकिन वह प्रगट किसने किया? भगवान जगतमें सर्वोत्कृष्ट हैं। जो जगतमें वाणी बरसायी और सबको मार्ग बता रहे हैं, स्वयं स्वरूपमें लीन हो गये हैं। उनका शरीर भी परम औदारिक हो जाता है। जगतमें सर्वोत्कृष्ट.. कुदरतके परमाणु प्रतिमारूप इकट्ठे हो जाते हैं। किसीने किया नहीं है। शाश्वत प्रतिमाएँ देवलोकमें हैं, नंदीश्वरमें हैं, मेरु पर्वतमें हैं। और प्रत्येक देवोंके जो महल हैं, उन सबके पास हर जगह असंख्यात ऐसी जिन प्रतिमाएँ चारों ओर हैं। ऐसी प्रतिमाएँ होती है।
भगवान जगतमें सर्वोत्कृष्ट हैं। उनकी प्रतिमा भी वंनदीय है, पूजनिक है। श्रावक स्वयं अंतरमें आगे नहीं बढ सकते हैं तो भगवानको देखकर उनको उत्साह आ जाता है। ओहो..! भगवान! जिन्होंने आत्माका स्वरूप प्रगट किया! ये भगवान। उनकी प्रतिमाओंका भी उतनी महिमा है। जगतमें जिसे अपने पिता एवं माता-पिता पर प्रेम हों, उनकी फोटू देखकर खुशी होती है। उनकी फोटू रखते हैं। उन पर उसे महिमा आती है, स्तुति करता है, गुणग्राम करता है। ऐसा करता है।
यह भगवान तो सर्वोत्कृष्ट (हैं)। जगतमें मार्ग दर्शानेवाले और अंतर स्वरूपमें लीन हो जाय। भगवानकी प्रतिमा, कुदरत प्रतिमारूप परिणमती है। श्रावक प्रतिमाकी प्रतिष्ठा