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उच्च वस्तुएँ हैं, सामान्य वस्तु नहीं परन्तु उच्च वस्तुएँ आपके चरणमें धरता हूँ। अक्षत,
पुष्प, नैवेद्य, फल आदि आठ प्रकारके द्रव्य लेकर मैं आपकी पूजा करुँ, मैं आपके
चरणमें क्या रखुँ? मेरेमें कोई शक्ति नहीं है। मैं आपकी पूजा करता हूँ। पूजा करनेके
लिये अष्ट प्रकारी पूजा करता है। उसमें कुछ जगह साधारण वस्तुएँ रखते हैं, वह नहीं
(होना चाहिये)। यह बराबर है, अक्षत, पुष्प, जल, चंदन आदि। यह उसकी विधि
है। पूजा करनेकी विधि इस प्रकारकी है।
वह श्रावकोंका (कर्तव्य है)। श्रावक जो गृहस्थाश्रममें होते हैं, जो अपने लिये खाते-पीते थे, अपने लिये पैसे खर्च करते हो, भगवान पर उसे भाव आये बिना नहीं रहता। मुनिराजने जिसका त्याग कर दिया है, उनके पास कुछ नहीं है। तो वे मात्र भगवानके दर्शन करते हैं और स्तुति करते हैं, और स्तोत्र रचते हैं। बाकी उनके पास कोई वस्तु नहीं है, पूजा नहीं करते हैं, वे भावपूजा करते हैं। जो श्रावकोंके पास वस्तुएँ हैं, वह वस्तुएँ लेकर पूजा करते हैं।
आचाया तो भगवानके स्तोत्र रचते हैं। आचायाको एकदम उत्साह आ जाता है। उस प्रकारके स्तोत्र रचते हैं। भगवान! मैं तो चारों ओर आपको ही देखता हूँ। ये बादलके टूकडे हुए, वह इन्द्रोंने आपकी स्तुति करके भूजाएँ लंबी की तो बादलोंके टूकडे हो गये। ऐसे अनेक प्रकारकी स्तुति उपमा देकर करते हैं। ऐसे आचायाको उतनी भक्ति आती है, मुनिराजोंको (आती है)। हे भगवान! यह नदी बह रही है, आपने जब दीक्षा ली तब सबको आपका विरह लगा था। उस बहाने नदी रो रही है, कलकल- कलकल आवाज करती है।
मुमुक्षुः- भगवानके विरहमें?
समाधानः- हाँ। मुनिराज ऐसे शास्त्र रचते हैं। उतनी भक्ति आती है! भगवानको अनेक प्रकारकी उपमा देते हैं। भक्तिके भावमें कहते हैं। वे उपमासे कहते हैं, लेकिन ऐसी भक्ति आये बिना नहीं रहती।
मुमुक्षुः- स्वसन्मुख होनेके पुरुषार्थके लिये रुचि...?
समाधानः- हाँ, रुचि, विचार, वांचन आदि। सबकी संधि मिलाकर करना। द्रव्य अपेक्षासे क्या है? पर्याय अपेक्षासे क्या है? सब मिलान करके करना। द्रव्य और पर्यायकी संधि कैसे है, समझकर करना।
मुमुक्षुः- देव-गुरु-शास्त्रके दर्शन सम्बन्धित पूछा, बहुत समयसे ओघे-ओघे करनेके बजाय माताजीके पास समझकर करें तो विशेष आनन्द आये। उसमेंसे बहुत समझ प्राप्त हुयी। आरती उतारनेका प्रयोजन..?