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समधानः- वह भी एक प्रकारकी भगवानकी भक्ति है। वह भक्तिका भाव है। कुछ जगह आरती नहीं उतारते हैं, कोई-कोई उतारते हैं। लेकिन भगवान पर महिमा आती है इसलिये आरती उतारते हैं। एक प्रकारकी भक्ति है। श्रावकोंको भक्ति और महिमा आती है। भगवान! मैं आपका क्या करुँ और क्या न करुँ? मैं जो कुछ भी करुँ, आपका ... मैं यह सब संसारकी ऋद्धियाँ हैं, उसकी मुझे कोई महिमा नहीं है। मुझे आपकी महिमा है, इसलिये मैं आरती द्वारा आपके गुणोंकी महिमा करता हूँ। आपका वारना ऊतारुँ कि वाह! आपने यह गुण प्रगट किये। उसे मैं क्या कहूँ? इसलिये वह आरती ऊतारता है। वाह रे वाह..! भगवान! ऐसा करके आरती ऊतारता है, वह एक प्रकारकी भक्ति है।
... कितना उनका मान! लोग उनको कितना (मानते थे)। उनकी प्रतिष्ठा कितनी थी स्थानकवासीमें। उन्हे माननेवाले कितने थे। उन्होंने शास्त्र पढकर छोड दिया कि यह जूठा है। कितनी उनकी प्रतिष्ठा। गुरुदेव तो स्वयं एकदम (निस्पृह थे)। कोई सामने देखे, न देखे, उनको कुछ नहीं था। एकदम अपनेमें ही थे। लेकिन लोगोंमें उतनी उनकी प्रतिष्ठा थी।
मुमुक्षुः- जब महोत्सव था तब हम बहुत छोटे थे।
समाधानः- ... सरलता प्रगट करे तो माया चली जाती है। दोनों प्रकारकी माया। दर्शनमोह ... सब विभाव है वह विभाव ही है। मैंने यह कैसे जिता? मैंने यह कैसा किया? ऐसा कुछ आता है। मैं दूसरे प्रकारसे आकर खडा हूँ। तू मान, तुझे उसमें ठगता है। एक गुण (प्रगट) करके उसकी स्वयं विशेषता करने जाय तो दूसरा दोष आ जाता है। यह मैंने कितना अच्छा किया, यह गुण मैंने कैसा अच्छा (प्रगट) किया, ऐसा करने पर तुझे मान ठग लेता है। इसलिये कहते हैं, माया आदि कषायोंके अन्दर... भिन्न-भिन्न कषाय उस प्रकारसे जीते नहीं जाते। एक ज्ञायकको स्वयं पहचाने तो सबको जीता जाता है। लेकिन पात्रताकी भूमिकामें ध्यान रखने जैसा है। "कषायनी उपशांतता मात्र मोक्ष अभिलाष'। आत्मार्थीको प्रयोजन आत्माका होना चाहिये। उसमें उपशांतता होनी चाहिये। विशालबुद्धि, जितेन्द्रियता, सरलता, मध्यस्थता आदि आता है न? तत्त्व पानेका उत्तम पात्र है। सरलता, मध्यस्थता, विशालता तत्त्व ग्रहणकी शक्ति होनी चाहिये, जितेन्द्रियता होनी चाहिये, सरलता होनी चाहिये, मध्यस्थता होनी चाहिये। वह तत्त्व पानेका उत्तम पात्र है।
हृदय ऐसा सरल होना चाहिये, वक्रता नहीं होनी चाहिये। जो कोई कुछ बात करे तो सीधी तरहसे स्वयं ग्रहण कर सके। ऐसा अपना हृदय होना चाहिये। वक्रतामें छल-कपट नहीं होना चाहिये। सरलतासे जो बात हो वह सीधी ग्रहण हो, ऐसा अपना