Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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चित्त और अंतरमें अपना चित्त होना चाहिये कि अन्दर विभावभावोंको स्वयं पहचान
सके, आडी-टेढी रीतसे बचाव करने हेतु वक्रता धारण करे (नहीं)। टेढा-मेढा अन्दरमें
... ऐसा सीधा स्वयंका वक्रता रहित सरल चित्त होना चाहिये। वक्रता नहीं आती।
... यह सब आता है न?

फिर संतोष द्वारा लोभको। अतिशय लोभ अच्छा नहीं। इतना लोभ... या तो शरीर प्रति, या धनके प्रति, अनेक प्रकारका (लोभ होता है)। जहाँ-जहाँ स्वयंको राग हो, उसका अतिशय लोभ नुकसानका कारण होता है। चमरी गायने प्राणत्याग किये। उसके बालकी पूंछ (अटक गयी), उसके बाल ऐसे होते हैं, चमरी गायके। उसको इतना राग था। बेलमें लिपट गयी। लिपटनेके बाद अन्दरसे निकली ही नहीं। क्योंकि निकलूँगी तो मेरे बाल टूट जायेंगे। इसलिये बालके लोभमें निकली नहीं तो शिकारी आकर उसका वध करता है। ऐसा कहते हैं।

ऐसा कहते हैं कि, स्वयं लोभके कारण ऐसे पैसेमें, शरीरादिके लोभमें धर्मकी ओर मुडता नहीं है और मनुष्य जीवन पूर्ण हो तो देह (छूटकर) आयुष्य पूरा हो जाता है। बादमें करुँगा, बादमें करुँगा, इतना कमा लूँ, इतना कर लूँ, इतना यह कर लूँ, ऐसा करते-करते आयुष्य पूर्ण हो जाता है। धनका लोभी। लोग कहते हैं न? चमडी टूटे लेकिन दमडी न छूटे। शरीर जाय तो भी उसे पैसा अन्दरसे छूटता नहीं। ऐसे कुछ जीव होते हैं। प्राण जाय तो भी उसके पैसे नहीं छूटते, ऐसे जीव होते हैं। पैसे पर कितना राग होता है। शरीर पर उतनी ममता होती है। बैठे-उठे तो भी मानो मेरे शरीरको कुछ हो जायेगा। शरीरको सँभाल-सँभालकर करता है। लेकिन उसमें तेरा आयुष्य पूरा हो जायेगा। ऐसा करुँगा तो शरीर अच्छा रहेगा और ऐसा करुँगा तो आरोग्य रहेगा, ऐसा करुँगा तो ऐसा रहेगा, ऐसा करते-करते स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता है। वह तो जैसा बनना होता है वैसा बनता है। उसे अमुक प्रकारसे रख सकते हैं। ऐसे रह नहीं सकते। अपना आयुष्य पूरा हो जाय तो भी शरीर रखुँ, धन रखुँ..। देव- गुरु-शास्त्रमें धनव्यय करनेके प्रसंगमें जिसका धन नहीं छूटता। देव-गुरु-शास्त्रका प्रसंग आवे, उनकी अमुक प्रकारकी सेवाका, ऐसे प्रसंग आवे, सेवाके, वात्सल्यके प्रसंग आवे उसमें जो मन-वचन-कायासे शरीर आदि जो कुछ.. चाहे जो भी उपसर्ग आवे तो भी वह कर नहीं सकता, तो ऐसा लोभ किस कामका?

संतोष द्वारा लोभको (जीते)। उसे संतोष है। इस जीवनमें क्या चाहिये? कुछ भी तो नहीं चाहिये। पेटमें रोटी डालनी है, बस, उतना ही चाहिये। ओढना ओर रोटी, दूसरा कुछ नहीं चाहिये। यह सब धन तो पडा रहेगा, कहाँ साथ आनेवाला है? शरीरको चाहे जितना सँभल-सँभलकर आवे तो जो खरा प्रसंग होता है, वह चला जाता है,