१६८ तो शरीरको सँभालकर क्या करना है? इसलिये जीव ऐसा करता है। एक इतनी रोटी चाहिये और थोडे कपडे चाहिये। उसके लिये पैसा-पैसा करता रहता है। देव-गुरु- शास्त्रमें जिसका जीव उदारतासे कुछ (नहीं धनव्यय करता है) तो वह मनुष्य जीवन किस कामका? वह धन भी किस कामका और मनुष्य जीवन भी किस कामका? शरीर भी किस कामका? कुछ नहीं।
अन्दरसे एक आत्मामें परपदार्थका अंश भी नहीं है। एक पुदगल उसका नहीं है। ज्ञायक स्वरूप आत्मा, जो देहातीत दशा धारण करते हैं, जो सब छोडकर निष्परिग्रही होकर मुनि चल देते हैं। बाह्य-अभ्यंतर परिग्रह, विभाव और बाहरका छोडकर एक आत्मामें ज्ञायककी धाराको चारित्रमें लीनता करते हैं। निष्परिग्रह (हैं)। उन्हें लोभ आदि सब छूट जाता है। ऐसी मुनिओंकी दशा (होती है)। यह सब मुनिओंको कहते हैं न? हे मुनि! तूने यह सब लिया, तुझे लोभ क्यों बीचमें आता है? मुनिओंकी ओर (बात) लेते हैं)। उनकी चारित्रदशाके अन्दर सम्यग्दर्शनपूर्वक छठ्ठे-सातवें गुणस्थानमें झुलते हैं। मुनिओंको कहाँ लोभ था? परन्तु अल्प लोभ भी मुनिओंको पुसाता नहीं। मुनिओंको दूसरा लोभ तो है नहीं। आहार लेने जाते हैं। ऐसा सब मुनिओंको होता है। तो भी मुनिओंको कहते हैं, तुझे किसी भी प्रकारका पुसाता नहीं।
... शोभा नहीं देता। आत्माका स्वभाव ही नहीं है। क्रोधका, मानका, मायाका, लोभका। संतोष। संतोषस्वरूप आत्मामें कुछ है ही नहीं। प्रवेश ही नहीं हुआ है। आत्माको कुछ चाहिये ही नहीं। आत्मा स्वयंसे परिपूर्ण है। उनके गुणोंका परिग्रह, वही उनके पास धन है। दूसरे धनकी उन्हें कोई आवश्यकता नहीं है। मुनिकी बातमेंसे जिसे जो लागू पडे वह लेना।
... आता है न? दानमें देता है। उसकी शक्ति अनुसार। बहुत खेद हो जाय या शरीर काम नहीं करता हो, .. यथाशक्ति आता है। लेकिन यह तो चमरी गायका दृष्टान्त दिया। एक बाल भी टूट जाय, वह उसे पुसाता नहीं। बहुत लोग (ऐसे होते हैं), चमडी टूटे, दमडी न छूटे, ऐसे बहुत लोग पैसेमें ऐसे होते हैं। यह चमडी जाय तो भले जाय, लेकिन पैसा छूटता नहीं। ऐसे भी कुछ लोग होते हैं। गाय भी ऐसी होती होगी, चमरी गाय। पूँछ ऊँची करती होगी तो उसे दिखायी देता होगा।
मुमुक्षुः- कैसी ममता!
समाधानः- हाँ, यह तो बडा लोभ है, बालका। बाल जाय वह भी पुसाता नहीं। उस जगह अल्प ..., यह लोभ तो बडा है।
... श्रेणिमें बीचमें आये तो केवलज्ञान नहीं होता है। इतना लोभ भी नुकसान करता है। सूक्ष्म ... इतना संज्वलनका है। उन्हें कोई प्रगटरूपसे धनका, शरीरका, कुटुम्बका