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चारित्र नहीं है, उससे मोक्ष नहीं होता। मोक्ष तो आत्मामें लीन हो, ऐसा चारित्र प्रगट हो तो ही मोक्ष होता है, नहीं तो उसे मोक्ष नहीं होता।
मुमुक्षुः- जीव एकबार मोक्षमें जानेके बाद वापस नीचे नहीं आता है न?
समाधानः- मोक्षमें जानेके बाद वापस नहीं आता। अन्दर स्वयं आत्मा मोक्षस्वरूप ही है। उसमें स्वयं लीनता करे तो मोक्षकी पर्याय यहीं प्रगट होती है। फिर तो वह एक क्षेत्रमें जाता है। यहाँ जीव था, वह सिद्धक्षेत्रमें गया। वहाँ जानेके बाद वापस नहीं आता। उसे भव नहीं होते। जन्म-मरणका नाश हो जाता है। फिर जन्म नहीं होता। लेकिन अन्दर वैसी तैयारी स्वयं यहीं कर लेता है। आत्मामें ऐसा लीन हो जाता है कि बाहर ही नहीं आता।
मुमुक्षुः- ..जितने कर्म बन्धे हैं, वह सब नष्ट हो जाते हैं?
समाधानः- हाँ। आत्माको पहचाने तो क्रोडो वषाके सभी कर्म क्षय हो जाते हैं।
मुमुक्षुः- ऐसा कहते हैं न कि चौरासी लाखके चक्कर काटने पडे। वह सब..
समाधानः- सबका नाश हो जाता है। एक आत्माको पहचाने, आत्माकी श्रद्धा करे, आत्मामें लीन हो तो सब टूट जाता है। उसे तोडने नहीं जाना पडता। बाहरसे उपवास करे, त्याग करे, सब करे तो कर्मका नाश हो, ऐसा नहीं है।
मुमुक्षुः- ... सबको ऐसी भावना होती है कि वर्षीतप करे, कर्मनाशके हेतु, वह जूठी मान्यता है?
समाधानः- वैसे कर्मका नाश नहीं होता। कर्म तो अन्दर आत्मामें आत्मा प्रगट हो तो कर्मका नाश होता है। वह मान्यता है वह समझ बिनाकी मान्यता है। अज्ञानी जो कर्म लाख-क्रोड भवमें नाश करे, वह ज्ञानी एक सांसमें क्षय करता है। आत्माका ज्ञान होनेसे एक सांस ले उतनी देरमें उसके कर्म क्षय हो जाते हैं और लाख-क्रोड भव पर्यंत अज्ञानी जो कर्मका नाश नहीं कर सकता, वह ज्ञानी एक क्षणमात्रमें क्षय करता है। आत्माको समझे बिना कर्मका नाश नहीं होता। आत्माका ज्ञान जिसे होता है, उसे त्यागादि सब होता है। लेकिन कर्मका नाश तो ज्ञानसहित हो तो होता है। अज्ञानीको कर्मका नाश होता है और फिर नये बान्धता है। वास्तविक रूपसे तो छूटते ही नहीं। त्याग करे, साथमें नये-नये साथमें बान्धता है और माने कि इससे मुझे धर्म होता है। साथमें जूठी मान्यता है, इसलिये नये कर्म बान्धता है।
(ज्ञानीको) कर्म क्षय इसप्रकार होते हैं कि जो क्षय होनेके बाद नया बन्ध नहीं होता। इसप्रकार ज्ञानीको क्षय होता है। नये बन्धते ही नहीं। मक्खनमेंसे घी होता है, फिर घीमेंसे पुनः मक्खन नहीं होता। वैसे जो अन्दरसे वीतराग हो गया, स्वानुभूतिमें लीन हो गया, केवलज्ञान हो गया, उसका फिरसे मक्खन नहीं होता।