Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक- ९८

हैं, अरे..! ये क्या? ऐसा करके स्वयं पलट जाता है अन्दर, उसी क्षण पलट जाता है। एकदम पुरुषार्थ शुरू होता है।

मुमुक्षुः- उपदेशके वक्त उसकी भूमिका शुद्ध हो जाती है?

समाधानः- उसकी भूमिका शुद्ध.. उपदेशका निमित्त और स्वयंकी तैयारी, दोनोंका मेल हो जाता है। भूमिका शुद्ध होती है, उसे अंतरमेंसे पुरुषार्थ शुरू होता है, भेदज्ञान होता है। मुनिराज उपदेश देते हैं तो पलट जाता है, सब पलट जाता है। एक अंतर्मुहूर्तमें जीव पलट जाता है। उपदेश उसे निमित्त बनता है। स्वयंका पुरुषार्थ अन्दरसे शुरू होता है। पुरुषार्थ करनेमें ऐसा होता है कि मैं यह ज्ञायक हूँ। इस प्रकार स्वयं ही पुरुषार्थसे, पुरुषार्थके बलसे स्वयं ही पलटता है। काललब्धिके जोरसे पलटता नहीं, स्वयं पुरुषार्थसे पलटता है।

मुमुक्षुः- पूर्व संस्कार भी कोई...?

समाधानः- वर्तमान पुरुषार्थ करे तब पूर्व संस्कार (कहा जाता है)। ऐसे ही पूर्व संस्कार जोर करके नहीं करता। स्वयं पुरुषार्थ करता है। प्रत्येकको पूर्व संस्कार नहीं होते। किसीको होते हैं और किसीको नहीं होते हैं। निगोदमेंसे निकलता है, वहाँ पूर्व संस्कार कहाँ होते हैं? तो भी वह पलट जाता है। निगोदके जीवमेंसे निकलकर उसमें .. होते हैं। उसके बाद भरत चक्रवर्तीके पुत्र होते हैं। एकदम पलट जाते हैं। एकदम मुनिदशा अंगीकार करते हैं।

मुमुक्षुः- सबमें पुरुषार्थ?

समाधानः- सबमें पुरुषार्थ। उसमें काललब्धि साथमें होती है। पुरुषार्थ करनेवालेको ऐसा ही होता है कि मैं पुरुषार्थ करुँ। मेरी भूलसे मैं रखडा हूँ और मेरे पुरुषार्थसे मैं पलटता हूँ। मैंने भूल की। मुझे किसीने भूल करवायी या मुझे कर्मने भूल करवायी और अब काल, योग अच्छा आया तो अब मुझे कर्मने छुडाया, ऐसा माननेवाला, ऐसी पराधीनता माननेवाला कभी पुरुषार्थ नहीं कर सकता। और कर्मके कारण मैं रखडा। मुझे कर्मने यह भूल करवायी, अब मेरी काललब्धि पकी इसलिये अब मैं पलटता हूँ। ऐसी भावना रखनेवाला आगे नहीं बढ सकता। वह तो पराधीन हो गया।

मैं स्वयं स्वतंत्र हूँ। मैं मेरी ओर मुडनेमें स्वतंत्र और विभावकी ओर जानेमें भी मैं स्वतंत्र (हूँ)। प्रत्येकमें मैं स्वतंत्र हूँ। स्वतंत्र है। उसे कर्म बलात नहीं करवाते। काललब्धि पके तो स्वयं पुरुषार्थ करे, ऐसा नहीं होता। उसके साथ उसका सम्बन्ध होता है। काललब्धि होती है और पुरुषार्थका सम्बन्ध होता है। पुरुषार्थ करता है, उसकी कालल्बधि परिपक्व ही होती है। क्षयोपशम, कषायकी मन्दता उन सबका सम्बन्ध होता है। पुरुषार्थ, काललब्धि...।