१८० कारण क्या? स्वभावसे तो शुद्ध ही है, परन्तु पर्यायमें अशुद्धता है इसलिये उसे पुरुषार्थ चलता है। अन्दर सब ख्याल है। यथार्थ तत्त्वार्थ श्रद्धान करके भेदज्ञानका अभ्यास करना है। तत्त्वार्थ श्रद्धान किये बिना मैं भिन्न-भिन्न हूँ, करता रहे तो शुष्कताकी बात नहीं चलती। सब हो जाय, फिर कहे, मैं भिन्न हूँ। ऐसे बोलनेकी बात नहीं है। रागमें एकत्वबुद्धि हो और फिर कहे, मैं भिन्न हूँ। अन्दरसे यथार्थ भावरूप उसे हो कि मैं भिन्न हूँ, विरक्त होकर भिन्न पडता है, भिन्नता करके।
... सिंहके भवमें सम्यग्दर्शन प्राप्त किया। फिर आगे-आगे दशा प्राप्त (होती है)। मुनिदशा और बादमें केवलज्ञान पर्यंत पहुँच गये हैं। उसके बाद सब साधनाके ही भव है। सम्यग्दर्शन होनेके बाद ऊँचे-ऊँचे (भव ही है)। मुनिदशा अंगीकार करते हैं, फिर देवका भाव, उसके बाद साधनाके ऊँचे-ऊँचे भव करके केवलज्ञानकी प्राप्ति करते हैं। उसके पहले कितनी ही भव हुए हैं, लेकिन सिंहके भवके बाद आराधनाके भाव हुए हैं। गुरुदेवने इस पंचमकालमें, सम्यग्दर्शन किसे कहते हैं, आदि सब बताया। ... नव तत्त्वकी श्रद्धा वह सम्यग्दर्शन, ऐसा मानते थे। स्वानुभूति सम्यग्दर्शन कौन समझता था? गुरुदेवने सम्यग्दर्शन किसे कहते हैं? मुनिदशा किसे कहते हैं? केवलज्ञान किसे कहते हैं? सब गुरुदेवने बताया है।
मुमुक्षुः- माताजी! मुनिकी भाषा सिंह कैसे समझ गया?
समाधानः- समझ गया। मुनि किस प्रकारके कैसे भावसे बोल रहे हैं, वह समझ गये। आत्मा है न सिंह। और उस प्रकारका क्षयोपशमज्ञान अन्दरसे प्रगट हो गया। मुनिकी भाषा और उनके भाव परसे ग्रहण कर लिया। ऐसी ग्रहण करनेकी शक्ति उनमें आ गयी। तीर्थंकरका जीव है। उनमें ऐसा ग्रहण करनेकी शक्ति (प्रगट हो गयी)। भले सिंह थे तो भी उन्हें ग्रहण करनेकी शक्ति कोई अलग थी।
मुमुक्षुः- गुरुदेव याद आते हैं कि तीर्थंकरका जीव थे।
समाधानः- गुरुदेव तीर्थंकरके जीव थे। तीर्थंकरका जीव यानी स्वयं... गुरुदेवने इस पंचमकालमें पधारकर... स्थानकवासीमें थे, स्वयंने क्या सत्य है, यह सब नक्की करके परिवर्तन किया।
मुमुक्षुः- जैसे तीर्थंकर स्वयंबोधित होते हैं, वैसे गुरुदेव स्वयंबोधित थे।
समाधानः- हाँ, वैसे स्वयंबोधित थे। स्वयंने अपनेआप सब नक्की किया।
मुमुक्षुः- पण्डित ऐसा कहते थे, उनके कोई गुरु नहीं है और ऐसा ज्ञान कहाँसे आया? ऐसा एक पण्डित कलकत्तामें कहते थे।
समाधानः- स्वयंबुद्ध है, तीर्थंकरका जीव है। स्वयं मार्ग चलानेवाले हैं।
मुमुक्षुः- मार्ग प्रवर्तक हैं।