Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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समाधानः- मार्ग प्रवर्तक हैं। मार्ग स्वयं ग्रहण करके, मार्ग प्रगट करके दूसरोंको प्रगट करनेमें निमित्त बनते हैं, महा प्रबल निमित्त बनते हैं। उनके जैसा कोई मार्ग प्रवर्तन नहीं कर सकता। सबका परिवर्तन (हो गया)। पूरे संप्रदायमें सबकी दृष्टि ही अलग। उनकी वाणीसे सबकी दृष्टि अलग कर दी। तीर्थंकरके जीवके सिवा ऐसा कोई नहीं कर सकता। कितनोंके संप्रदायके बन्धन टूट गये। सबकी श्रद्धा भिन्न थी, वह टूट गयी। कितने ही अन्यमतमें सबमें कितने फेरफार हो गया। स्थानकवासी, श्वेतांबर, दिगंबर, इसके सिवा दूसरे, कोई व्होरा, कोई अन्य कितनोंका परिवर्तन हो गया।

मुमुक्षुः- अनजान आदमी नत मस्तक हो जाते थे।

समाधानः- अनजाने। ये कोई महापुरुष है। बोले तब तो एकदम अलग ही लगे कि ये तो कोई अलग है। वाणी बरसा गये।

मुमुक्षुः- आत्माका स्वरूप सत चिद और आनन्द है। उसमें चिदका कुछ आभास विचार करनेपर... जैसे यह ज्ञान है वह जानता है, तो कुछ आभास विचार करनेपर आता है। लेकिन आनन्दका और चिदका त्रिकाली नित्य द्रव्य है, उसका किसी भी प्रकारसे आभास नहीं हो रहा है।

समाधानः- विचार करे तो सब समझमें आये ऐसा है। वह ज्ञानस्वरूप है। लेकिन वह ज्ञान क्या? ज्ञान गुण है, वह कोई वस्तुका गुण है। अवस्तु नहीं है। कोई सत वस्तु है, आत्मा पदार्थ है, उसका वह गुण है। ज्ञान है वह पूरा ज्ञायक है। विचार करे तो समझमें आये। सुख-सुखकी इच्छा जीव करता है। इसलिये सुख कोई पदार्थमें- स्वयंमें है। आनन्द गुण स्वयंका है। इसलिये सुख-सुख करता हुआ बाहरसे सुख इच्छता है। सुख बाहरसे नहीं आता है। अपना स्वभाव है। विचार करे तो वह सब समझमें आये ऐसा है, परन्तु विचार नहीं करता है। इसलिये समझना मुश्किल पडता है।

सत स्वरूप स्वयं अनादिअनन्त जो वस्तु है, उस वस्तुका यह गुण है। वह गुण कोई पदार्थका है। गुण ऊपर-ऊपर नहीं है। ज्ञानगुण है वह वस्तुका है, सतका है। वह असत नहीं है। वस्तुका गुण है। ऐसे विचार करे तो समझमें आये ऐसा है। मैं ज्ञायक हूँ, मेरा स्वभाव जानना है। उसमें आनन्द भरा है, अनन्त गुण भरे हैं। ज्ञान और आनन्दसे समृद्ध परिपूर्ण आत्माका स्वभाव है। उसमें थोडी भी कमी नहीं है। लेकिन स्वयं समझता नहीं है, इसलिये आनन्द गुण उसे मालूम नहीं पडता है।

ज्ञानगुण यदि यथार्थ समझे तो सब समजमें आये। ज्ञानगुणको भी वह ऊपर-ऊपरसे समझता है। ज्ञानको यथार्थपने यदि समझे, ज्ञान असाधारण गुण है इसलिये उसे ख्यालमें आता है। लेकिन यथार्थपने ज्ञानको पहचाने तो वस्तुको पहचाने, आनन्दको पहचाने, सबको पहचान सकता है। जीवने अनन्त कालसे अपनेमें अपूर्व सम्यग्दर्शनको प्राप्त नहीं