अमृत वाणी (भाग-३)
१८२ किया है। गुरुदेवने बताया है कि यह सम्यग्दर्शनका स्वरूप है। सम्यग्दर्शन प्राप्त हो तो उसमें यह सब उसे प्रतीतमें आता है। स्वयं पहचानता नहीं है, अपनी कचासके कारण नहीं पहचानता है।
प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!