Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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हो तो। वह कोई आनन्द (नहीं है)।

लेकिन आनन्दकी झंखना करता है, आनन्दको जो इच्छता है, वह स्वयं ही आनन्दस्वरूप है, इसलिये आनन्दकी इच्छा करता है। जड इच्छता नहीं। जो स्वयं इच्छा करता है, वह स्वयं ही आनन्दस्वरूप है कि जिसे अन्दरसे ऐसी भावना होती है कि मुझे आनन्द चाहिये। ऐसी भावना है वह रागरूप हो जाती है। लेकिन ऐसी जो अंतरमेंसे (इच्छा होती है), ऐसी परिणतिमें ऐसा होता है कि मुझे आनन्द चाहिये। अन्दरसे जो उसे आनन्दकी भावना उत्पन्न होती है, वह स्वयं आनन्दस्वरूप है इसीलिये उसकी भावना उत्पन्न होती है।

मुमुक्षुः- वैसे तो ऐसा ख्याल आता है कि सुबहसे शाम तक एक भी आनन्दका किरण दिखायी नहीं देता। ऐसा तो ख्याल आता है।

समाधानः- आनन्द कहीं दिखायी नहीं देता। मिथ्या प्रयत्न करता है। परन्तु आनन्दके बिना उसे चलता नहीं। कहीं भी, कोई भी कल्पना करके मान लेता है।

मुमुक्षुः- चाहिये आनन्द।

समाधानः- चाहिये आनन्द। आनन्द नहीं हो तो भी कल्पनासे संतुष्ट होता है। अतः आनन्द उसका स्वयंका ही गुण है कि जहाँ-तहाँ कल्पना करता है। आनन्द बिना उसे चलता नहीं। जहाँ-तहाँ कल्पना करनेवाला वह स्वयं दिव्यमूर्ति दिव्य आनन्दसे भरा है, कोई अनुपम आनन्दसे भरा है कि जो बाहर कल्पना कर रहा है। अनन्त शक्तिओंसे भरा ऐसा चैतन्यदेव है। उसकी दिव्यता प्रगट करनेके लिये स्वयं ऐसी कोई अपूर्व भावना और अपूर्व रस एवं जिज्ञासा प्रगट करे तो वह उसे दिव्यता प्रगट करे।

भगवानने दिव्य स्वरूप प्रगट किया, पूर्ण केवलज्ञान मोक्ष हो गया। दिव्यतायुक्त अपना स्वरूप ही है। यदि वह स्वयं ऐसी भावना प्रगट करे तो वह प्रगट हुए बिना रहता भी नहीं। प्रतीत आनी चाहिये। सम्यग्दर्शन प्रगट करे तो उसकी शुरूआत होती है, उसकी दिव्य स्वानुभूतिकी। आगे बढनेपर वह विशेष बढता जाता है। पूर्ण आनन्द प्रगट हो जाता है। स्वानुभूतिमें एक अंश, आंशिक आनन्द उसे प्रगट होता है। जैसा सिद्ध भगवानका आनन्द होता है, वैसा ही आनन्द उसे प्रगट होता है। ऐसा अनुपम आनन्द कि वह वाणीसे कह नहीं सकते। क्योंकि जो बाहर कल्पना कर रहा है, वही स्वयं आनन्दस्वरूप है।

अन्दरसे जो उसे भावना उत्पन्न होती रहती है, वह आनन्द बिना रह नहीं सकता। कितनी ही बाह शुष्क आनन्द मानता है। उसे दुःख ही है, सुख तो है ही नहीं। कल्पना करता है।

मुमुक्षुः- विचार करे तो ख्याल आवे..