Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

१८६

समाधानः- विचार करे। आकुलतामें सुख मान लेता है। प्रवृत्ति करने जाता है। उसे ऐसा होता है, मुझे यहाँसे आनन्द मिलेगा। प्रत्येक प्रवृत्तिओंमें थक जाता है। बाह्य कोई भी प्रवृत्ति करनी, उसका स्वभाव ही नहीं। अन्य पदार्थका कर्तृत्व मानना, उसमें वह कुछ कर नहीं सकता है और थक जाता है। तो भी उसमें वह आनन्द मान रहा है।

अन्दर स्थिर हो जाना और निवृत्त हो जाना, अन्दरसे आनन्द प्रगट होता है, ऐसा ही उसका स्वभाव है। फिर उसे ऐसा होता है कि मुझे अंतरमेंसे कोई शान्ति प्राप्त हो जाय। अन्दर शान्तिकी इच्छा करनेवाला स्वयं ही शान्तिस्वरूप है। ज्ञायकके आश्रयसे वहाँ जानता है कि यह मैं जाननेवाला है। उसमें ही सबकुछ है ऐसा लगता है। उतना उसे विश्वास आना चाहिये।

जीव शान्तिकी इच्छासे जो वापस मुडे तो आत्माकी ओर भी ऐसे ही मुडता है कि मुझे शान्ति कहाँ मिले? मुझे आनन्द कहाँ मिले? इस हेतुसे स्वभावकी ओर मुडता है। लेकिन उसे विश्वास आता है तो मुडता है। शान्ति कहीं नहीं है, तो फिर कोई अन्य तत्त्वमें भरी है। जडमें नहीं है। चेतन ही उसकी इच्छा कर रहा है। चेतन ही इच्छता है, इसलिये चेतनमें भरी है।

वह स्वयं आनन्दस्वरूप ही है। जैसे स्वयं दिव्यस्वरूप है, स्वयं अनन्त दिव्य ज्ञानसे भरा है। एक समयमें उसे ज्ञानकी परिणति प्रगट होती है। ऐसा स्वयं आनन्दस्वरूप है। ऐसा स्वयं अनन्त दिव्य शक्तियोँसे भरा है। बारंबार उसकी श्रद्धा करे, उसकी प्रतीत करे, उसमें लीनता करे तो वह प्रगट होता है। जबतक न हो तबतक उसका रटन करे, बारंबार उसका विचार करे, बारंबार दृढता करे। वह आता है न? मेरे ज्ञानमें, मेरे ध्यानमें, सबमें... हैडे वसो मारा ध्यानमां जिनवाणी मारा हृदयमां। चैतन्यदेव बसे। मेरा हैडे हजो, मारा ध्याने हजो, मारा भावे हजो।

ऐसे शुभभावमें देव-गुरु-शास्त्र और अन्दर चैतन्यदेव, मेरे हृदयमें, मेरे भावमें, मेरे ध्यानमें बसो। सम्यग्दर्शन हुआ तो उसमें तो उसने ग्रहण ही कर लिया। उसे (ऐसे) ग्रहण करता है कि उसकी दृष्टिकी डोर वहाँसे छूटती नहीं। दृष्टिकी डोर जो उसने बान्धी और स्वानुभूति प्रगट हुयी कि बस, पूर्णता प्रगट करके छूटता जाता है।

मुमुक्षुः- एक बार ऐसा अनुभव हो, इसलिये बाह्य वस्तुका आश्चर्य छूट जाय।

समाधानः- आश्चर्य छूट जाता है। पहले उसे भावना होती है। बाहरसे आश्चर्य छूटकर अन्दर जाता है कि अन्दर कुछ अलग है, अंतरमें है, बाहर नहीं है। ऐसा प्राप्त होने पूर्व विश्वास आ जाता है। विश्वास आता है। आकुलता दिखती है। कहीं शान्ति नहीं है। सब ओरसे थकान लगती है, इच्छा अनुसार कुछ होता नहीं, भावना