Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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महिमा (आनी चाहिये)। जगतमें सब निःसार है। एक आत्मा सर्वोत्कृष्ट है, महिमाका
भण्डार है। और दूसरा, शुभभावोंमें देव-गुरु-शास्त्र होने चाहिये। जगतमें सर्वोत्कृष्ट हों
तो जिनेन्द्र देव हैं। गुरु सर्वोत्कृष्ट हैं, जो साधना करते हैं और शास्त्रोंमें उसका वर्णन
आता है। इसलिये जगतमें वह सब सर्वोत्कृष्ट है। इसलिये यह करने जैसा है, अंतरमें
ज्ञायकको पहचानकर। उसकी पहचान कैसे हो? उसके लिये शास्त्र स्वाध्याय, विचार,
वांचन आदि सब (होना चाहिये)। अन्दरसे हृदय भीगा हुआ रखना। भवका अभाव
कैसे हो, यह अंतरमें होना चाहिये।

मुमुक्षुः- चैतन्यकी महिमा बढानेके लिये क्या करना?

समाधानः- चैतन्य क्या वस्तु है? उसमें क्या भरा है? उसके गुण कोई अपूर्व हैं। गुरुदेव उसकी महिमा बताते थे। प्रवचनोंमें क्या आता है? शास्त्रोंमें क्या आता है? विचार करके नक्की करे। चैतन्य पदार्थ जगतमें कोई अपूर्व है। जगतमें उसके जैसे कोई वस्तु नहीं है। उसका आनन्द अपूर्व है, उसका ज्ञान अपूर्व है, सब अपूर्व है।

जो किसी अन्य साधन बिना अंतरमेंसे जो ज्ञान प्रगट होता है, जो अनन्त महिमासे भरा ज्ञायक-ज्ञान है, उसके स्वरूपको जगतकी कोई महिमा लागू नहीं पडती। ऐसा अनुपम है, उसे कोई उपमा लागू नहीं पडती। ऐसा अनुपम पदार्थ है। शास्त्रमें उसका बहुत वर्णन आता है। उसमेंसे विचार करे। आचार्य क्या कहते हैं? आचार्य वस्तुकी महिमा कर रहे हैं, उसका विचार करे। गुरुदेव महिमा करते हैं। तू आत्मा है, तू भगवान है। उसे पहचान। जो गुरुदेव कहते थे, वह अंतरसे कहते थे। इसलिये अंतरमें वह कोई अपूर्व पदार्थ है।

मुमुक्षुः- पूज्य गुरुदेव भी बारंबार कहते हैं, तू सुखका सागर है। आनन्दकी निधि हो, अतीन्द्रिय सुखका भण्डार है। तो अभी सुखकी प्राप्तिके लिये...?

समाधानः- स्वयं प्रयत्न करे तो होता है। पहले श्रद्धा करे। यथार्थ वस्तु तो यही है। फिर प्रयत्न भले धीरे-धीरे हो। परन्तु श्रद्धा तो बराबर करना। श्रद्धामें थोडा भी फर्क मत करना। श्रद्धामें थोडा भी फेरफार मत करना। श्रद्धा यथार्थ करना। तो फिर धीरे हो.. शास्त्रमें आता है, हो सके तो ध्यानमय प्रतिक्रमण करना। न बन सके तो श्रद्धा बराबर करना। परन्तु उसके लिये कोई ईधर-ऊधरके मार्ग पर मत जाना। दूसरी जगह कहीं मार्ग नहीं है। मार्ग आत्माका कोई अलग है। अन्दर सम्यग्दर्शन, स्वानुभूति होती है तब सम्यग्दर्शन कहनेमें आता है। नव तत्त्वकी श्रद्धा मात्र विकल्पसे कर ले, तो वह सम्यग्दर्शन नहीं है।

सम्यग्दर्शन अन्दर आत्मामें प्रगट होता है। और सम्यग्दर्शन होनेके बाद विशेष-विशेष आत्मामें जमता जाय, आगे बढे तब मुनिदशा आती है। अंतरमें मुनिदशा कोई अलग