Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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PDF/HTML Page 623 of 1906

 

अमृत वाणी (भाग-३)

१९० है। छठ्ठे-सातवें गुणस्थानमें झुले। अंतर्मुहूर्त-अंतर्मुहूर्तमें आत्मामें लीन होते हैं। बाहर आये तब द्रव्य-गुण-पर्यायके विचार आये। दूसरा सब तो मुनिराजको छूट गया है, सहजरूपसे। उन्हें बोझ नहीं लगता है, उपाधि नहीं लगती है। सहजरूपसे। वह दशा कोई अलग होती है।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!
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