Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 13.

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ट्रेक-०१३ (audio) (View topics)

समाधानः- उपादान यानी मूल वस्तु, मूलमें स्वयं उपादान। उपादानकारण यानी स्वयंका कारण। जो वस्तु है, वह मूल वस्तु उपादान और साथमें हो उसे निमित्त कहते हैं। स्फटिक स्वयं मूल वस्तु है। उसमें हरे-पीले रंगका प्रतिबिंब उठे वह बाहर है, वह निमित्त और स्वयं मूल वस्तु है वह उपादान। उसके उपादानकी योग्यता ऐसी है कि उसमें लाल-पीले रंगका प्रतिबिंब उठता है, वह उसका उपादान। बाहर है वह निमित्त। निमित्त कुछ करता नहीं, स्वयंके कारण ऐसा होता है। परन्तु उसका मूल स्वभाव है, उसका नाश नहीं होता।

मुमुक्षुः- ...

समाधानः- जली हुई डोरी होती है, वैसे कर्म अभी बाकी है। केवलज्ञानीको कर्मका नाश हो गया, कर्मका तो क्षय हो गया है। फिर जो थोडे कर्म बाकी है वह कर्म ऐसे हैं, जली हुई डोरी होती है न? जली हुई रस्सी होती है न? खाट भरते हैं न? जली हुई रस्सी जैसे कर्म (बाकी है), एकदम टूट जाये ऐसे हैं। थोडी देरमें खत्म हो जाते हैं। उन्हें, घातिकर्म जो केवलज्ञानको रोके, जो अन्दर आत्माके पुरुषार्थके रोके, वैसे निमित्तरूप, कोई रोकता नहीं है, अपने पुरुषार्थकी मन्दतासे रुका है। केवलज्ञानी भगवानको जो ऐसे कर्म थे, वह तो क्षय हो गये। परन्तु बादमें जो बाकी रहे, अभी शरीर छूटा नहीं, ऐसे जो कर्म बाकी है, वह कर्म जली हुई रस्सीके समान है, जल्दी नाश हो जाये ऐसे कर्म (हैं)। केवलज्ञानी शरीरसहित हो तो केवलज्ञानीको सब कर्म क्षय हो गये हैं, परन्तु बाकी जो रहे हैं वह जली हुई रस्सीके समान है। जब सिद्ध होंगे तब वह सब छूट जायेंगे। आयुष्य आदि कर्म है, वह सब कर्म जली हुई रस्सीके समान बाकी रहे हैं। नामकर्म है, गोत्रकर्म है ऐसे कर्म (बाकी हैं)।

मुमुक्षुः- घनघाती कर्म यानी क्या?

समाधानः- घनघाती, जो आत्माके गुणोंके घातमें निमित्त हो, उसे घनघाती कहते हैं। जैसे केवलज्ञानको रोकनेवाला, केवलदर्शनको, अन्दर पुरुषार्थको उन सबको रोकनेवाले कर्मको घनघाती कहते हैं। आत्माके गुणको घात करनेमें निमित्त। अर्थात वह घात नहीं करते, परन्तु निमित्त है।