‘બળી સિંદરીવત આકૃતિ માત્ર જો’ એટલે શું? 1:00 Play ‘बळी सिंदरीवत आकृति मात्र जो’ एटले शुं? 1:00 Play
ચોથો આરો-છઠો આરો એટલે શું? 3:20 Play चोथो आरो-छठो आरो एटले शुं? 3:20 Play
અબદ્ધસ્પષ્ટ, અનન્ય વિષે 5:20 Play अबद्धस्पष्ट, अनन्य विषे 5:20 Play
શુદ્ધતામાં કેલી કરે એટલે શું? 6:40 Play शुद्धतामां केली करे एटले शुं? 6:40 Play
વિરોધિયોંકે બીચમેં રહકર જ્ઞાનીયોંકે પ્રતિ શંકા ઉત્પન્ન ન હો? ઐસા કોઈ... 7:40 Play विरोधियोंके बीचमें रहकर ज्ञानीयोंके प्रति शंका उत्पन्न न हो? ऐसा कोई... 7:40 Play
કોઈ વ્યકિત જ્ઞાનીઓ માટે–ગુરુદેવશ્રી માટે ઉંધા-ચતા શબ્દો બોલે...તે સમયે શું કરવું? 9:40 Play कोई व्यकित ज्ञानीओ माटे–गुरुदेवश्री माटे उंधा-चता शब्दो बोले...ते समये शुं करवुं? 9:40 Play
કુંદકુંદસ્વામી કેવળજ્ઞાનનું સ્વરૂપ ગાથામાં વર્ણવે છે– તે શાસ્ત્ર આધારે કે તર્કણાથી વર્ણન કરે છે? 10:50 Play कुंदकुंदस्वामी केवळज्ञाननुं स्वरूप गाथामां वर्णवे छे– ते शास्त्र आधारे के तर्कणाथी वर्णन करे छे? 10:50 Play
કુંદકુંદાચાર્ય વિદેહક્ષેત્ર ગયા હતાં તે વિષે... તેમને કેવળજ્ઞાનીનો સાક્ષાત્ ભેટો થયો હતો? 12:55 Play कुंदकुंदाचार्य विदेहक्षेत्र गया हतां ते विषे... तेमने केवळज्ञानीनो साक्षात् भेटो थयो हतो? 12:55 Play
આપશ્રી જ્યારે કેવળજ્ઞાનનું સ્વરૂપ બતાવો છે ત્યારે એમ લાગે છે કે આપને પણ ભગવાનનો ભેટો થયો હોય અને સાંભળ્યું હોય એ જ કહેતા હો.. 15:00 Play आपश्री ज्यारे केवळज्ञाननुं स्वरूप बतावो छे त्यारे एम लागे छे के आपने पण भगवाननो भेटो थयो होय अने सांभळ्युं होय ए ज कहेता हो.. 15:00 Play
ચોથું ગુણસ્થાન એટલે શું? 16:30 Play चोथुं गुणस्थान एटले शुं? 16:30 Play
મુનિરાજને પોણી સેકંડથી વધારે ઉંઘ ન હોય તે કેવી રીતે ? 17:25 Play मुनिराजने पोणी सेकंडथी वधारे उंघ न होय ते केवी रीते ? 17:25 Play
સમ્યગ્દર્શન પ્રાપ્ત કરવા આ પામર જીવે શકિત કયાંથી લાવવી ? 17:50 Play सम्यग्दर्शन प्राप्त करवा आ पामर जीवे शकित कयांथी लाववी ? 17:50 Play
समाधानः- उपादान यानी मूल वस्तु, मूलमें स्वयं उपादान। उपादानकारण यानीस्वयंका कारण। जो वस्तु है, वह मूल वस्तु उपादान और साथमें हो उसे निमित्त कहते हैं। स्फटिक स्वयं मूल वस्तु है। उसमें हरे-पीले रंगका प्रतिबिंब उठे वह बाहर है, वह निमित्त और स्वयं मूल वस्तु है वह उपादान। उसके उपादानकी योग्यता ऐसी है कि उसमें लाल-पीले रंगका प्रतिबिंब उठता है, वह उसका उपादान। बाहर है वह निमित्त। निमित्त कुछ करता नहीं, स्वयंके कारण ऐसा होता है। परन्तु उसका मूल स्वभाव है, उसका नाश नहीं होता।
मुमुक्षुः- ...
समाधानः- जली हुई डोरी होती है, वैसे कर्म अभी बाकी है। केवलज्ञानीको कर्मका नाश हो गया, कर्मका तो क्षय हो गया है। फिर जो थोडे कर्म बाकी है वह कर्म ऐसे हैं, जली हुई डोरी होती है न? जली हुई रस्सी होती है न? खाट भरते हैं न? जली हुई रस्सी जैसे कर्म (बाकी है), एकदम टूट जाये ऐसे हैं। थोडी देरमें खत्म हो जाते हैं। उन्हें, घातिकर्म जो केवलज्ञानको रोके, जो अन्दर आत्माके पुरुषार्थके रोके, वैसे निमित्तरूप, कोई रोकता नहीं है, अपने पुरुषार्थकी मन्दतासे रुका है। केवलज्ञानी भगवानको जो ऐसे कर्म थे, वह तो क्षय हो गये। परन्तु बादमें जो बाकी रहे, अभी शरीर छूटा नहीं, ऐसे जो कर्म बाकी है, वह कर्म जली हुई रस्सीके समान है, जल्दी नाश हो जाये ऐसे कर्म (हैं)। केवलज्ञानी शरीरसहित हो तो केवलज्ञानीको सब कर्म क्षय हो गये हैं, परन्तु बाकी जो रहे हैं वह जली हुई रस्सीके समान है। जब सिद्ध होंगे तब वह सब छूट जायेंगे। आयुष्य आदि कर्म है, वह सब कर्म जली हुई रस्सीके समान बाकी रहे हैं। नामकर्म है, गोत्रकर्म है ऐसे कर्म (बाकी हैं)।
मुमुक्षुः- घनघाती कर्म यानी क्या?
समाधानः- घनघाती, जो आत्माके गुणोंके घातमें निमित्त हो, उसे घनघाती कहते हैं। जैसे केवलज्ञानको रोकनेवाला, केवलदर्शनको, अन्दर पुरुषार्थको उन सबको रोकनेवाले कर्मको घनघाती कहते हैं। आत्माके गुणको घात करनेमें निमित्त। अर्थात वह घात नहीं करते, परन्तु निमित्त है।