Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-१०२

मात्र वस्तुको तोडनेके लिये या वादविवाद करनेके लिये नहीं होना चाहिये।

मुमुक्षुः- श्रद्धाको सम्यक होनेके लिये यथार्थ ज्ञानकी ... होनी चाहिये?

समाधानः- ज्ञानकी जरूरत पडती है। श्रद्धा यथार्थ होनेके लिये ज्ञानसे ही नक्की होता है, तत्त्व विचारसे ही नक्की होता है। इसलिये ज्ञान उसका साधन है। ज्ञान तो उसका साधन है। श्रद्धा होनेमें ज्ञान साधन है। श्रद्धा द्रव्य पर दृष्टि करके जोरसे मुक्तिके मार्गमें आगे बढती है। श्रद्धा होनेमें ज्ञान कारण है।

मुमुक्षुः- बहिनश्री! पर्याया रहित तो द्रव्य कभी होता नहीं। ऐसी स्थिति होनेके बावजूद पर्यायको गौण करके द्रव्य सन्मुख होना?

समाधानः- पर्याय पलटती रहती है, पर्याय कहाँ एकरूप रहती है? विभाव पर्याय है, वह सब पलटती रहती है। शुभाशुभ भाव पलटते रहते हैं। वह मूल वस्तु कहाँ है? मूल वस्तु नहीं है। पर्याय रहित द्रव्य नहीं है, परन्तु द्रव्य तो मूल वस्तु है। यह मूल वस्तु नहीं है। जो पलटती वस्तु है, उस पलटनेका आश्रय नहीं होता। मूलका आश्रय होता है।

वृक्ष उगाये तो उसके बीज पर दृष्टि होनी चाहिये। डाले-पत्ते (पर नहीं)। उसकी बीज पर दृष्टि हो तो वृक्ष उगता है। बिना मूलके नहीं होता। उसका मूल तो द्रव्य है, भले पर्याय रहित न हो। पर्यायका आश्रय काम नहीं आता।

मुमुक्षुः- वहाँ कहा न? पनपता है तब शोभता है।

समाधानः- हाँ, वह। मूल है। बीज पनपे तब शोभता है, परन्तु मूल वस्तुको पहचानकर ग्रहण करे तो पनपेगा न? उसे पहचानकर मूलको ग्रहण करे, उसकी श्रद्धा करे, उसका ज्ञान करे, ज्ञान-वैराग्यका सिंचन करे तो पनपता है। और मूलको पहचाने तो पनपता है। द्रव्यके आश्रसे दृष्टिकी स्थिरता होती है। पर्यायके आश्रयसे स्थिर नहीं होता। पर्याय तो पलटती रहती है। शुद्ध पर्याय भी चैतन्यका वैभव है, अनन्त गुण भी उसका वैभव है। वस्तु तो मूल है। उस मूलको ग्रहण करे तो आगे बढता है।

मुमुक्षुः- द्रव्य बीजरूप है।

समाधानः- द्रव्य मूल वस्तु है। द्रव्यका सब वैभव है। द्रव्य कैसा है? कि अनन्त गुणोंसे भरपूर, अनन्य पर्याययुक्त, यह सब उसका वैभव है। मूल वस्तु है। मूल राजा कौन? मूल द्रव्य है। राजाका वैभव नहीं, राजा मूल वस्तुको ग्रहण करे तो आगे बढे।

मुमुक्षुः- जीवराजाको जानना वह, यह?

समाधानः- हाँ, जीवराजाको जाने, फिर श्रद्धा करे, फिर उसका आचरण करे। ऐसे जीवराजाको जानना, श्रद्धा करे, उसका अनुचरण करे।

मुमुक्षुः- नारकीका जीव प्रथम सम्यग्दर्शन प्रगट करता होगा, उस वक्त वह ऐसी