२०६ विचारश्रेणीमें चढ जाता होगा? पहली बार सम्यग्दर्शन प्रगट करे तब।
समाधानः- पीछले भवसे वह तैयारी करके गया है। तैयारी करके गया है, इसलिये उसे एकदम भेदज्ञान हो जाता है। दुःखके प्रसंग देखकर (ऐसा लगता है), यह? कहीं शान्तिका स्थान दिखाई नहीं देता है। यह किस प्रकारका संयोग और उदय है? ऐसा विचार करने पर अन्दर कहीं शान्ति है या नहीं? ऐसा विचार करने पर यह मैं मूल तत्त्व हूँ, उसमें शान्ति है। लम्बे विचार नहीं करता है, मूल वस्तुको ग्रहण कर लेता है। पीछले भवमें वह तैयारी करके, देशनालब्धि ग्रहण करके, अन्दरमें पात्रता तैयार करके गया है, इसलिये उसे एकदम हो जाता है।
समाधानः- ... गुरुदेवसे उतनी प्रभावना, उतने शास्त्र (प्रकाशित हुए)। कितने प्रवचन दिये गुरुदेवने बरसों तक। ऐसे महापुरुष इस कालमें-पंचम कालमें महा दुर्लभतासे मिलते हैं।
मुमुक्षुः- घर-घर स्वाध्याय, घर-घर तत्त्वचर्चा और समयसारजी शास्त्रको तो स्पर्श नहीं कर सकते, मुनिओंके लिये ग्रन्थ है। उसके बजाय छोटे बालकोंसे लेकर उस शास्त्र अभ्यास होने लगा।
समाधानः- चारों ओरसे। पंचमकालमें पधारे। ऐसे गुरुदेवका वषा तक सान्निध्य प्राप्त हुआ।
मुुमुक्षुः- चतुर्थ कालमें भी दुर्लभ ऐसा.. समाधानः- हाँ, चतुर्थ कालमें जो दुर्लभ है, वह ऐसे पंचमकालमें (प्राप्त हुआ)। कोई जागृत हो तो वे जंगलमें हो। यह तो मुमुक्षुओंके बीच रहकर बरसो तक वाणी बरसायी। वह तो महाभाग्यकी बात है।
मुमुक्षुः- दूसरे अनेक जीव प्राप्त करनेका प्रयत्न-पुरुषार्थ भी करते हैं।
समाधानः- अन्दरकी रुचि किसीको जागृत हुई हो तो गुरुदेवके प्रतापसे। एक अंशसे लेकर सब गुरुदेवके प्रतापसे ही है। कहाँ पडे थे। बाह्य दृष्टिमें थे, अंतर दृष्टि करवायी। संप्रदायमें थे तब भी सम्यग्दर्शन पर उतना वजन रखते थे।
मुमुक्षुः- तबसे फेरफार होने लगा। लोगोंको सम्यग्दर्शन क्या चीज है, उसका ख्याल आने लगा।
समाधानः- हाँ, सबको ख्याल आने लगा।
मुमुक्षुः- .... सम्यग्दर्शन ... यहाँ एक महाराज आये हैं, वे समकित पर बहुत वजन देते हैं। अपने तो ऐसा समझते थे कि .. किया इसलिये समकित और चौविहर और सामायिक करते हैं इसलिये पंचम गुणस्थान। यह महाराज ना कहते हैं। वे कहते हैं, सिद्ध भगवान जैसा आनन्द आये, उसका स्वाद चखे, शरीरकी चमडी ऊतारकर