Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

२०८

.. उन्हें धर्मकी लगनी थी। गुरुदेवका वढवाणमें चातुर्मास था, उस वक्त प्रवचन लिखकर पेपरमें देते थे। मैंने हिम्मतभाईको पत्र लिखा कि यहाँ एक महाराज आये हैं। हम लोग मानते थे कि नव तत्त्वको जानकर श्रद्धा की। दूसरे सब कहते हैं उसे माननेसे... ऐसा नहीं है। ऐसा तो अनन्त कालमें (बहुत बार) किया, यह महाराज तो कुछ अलग ही है। ऐसा कहते थे।

(समकितकी) महिमा करते हैं। यह महाराज आये हैं वे कुछ अलग ही है। मुझे सत्य लगता है। आप वहाँ थे तब लिखा था न? वहाँ वढवाणमें चातुर्मास था तब। गुरुदेवके प्रवचन सुनकर, यह महाराज कुछ अलग है। सम्यग्दर्शन पर बहुत वजन देते हैं। और वे कहते हैं वह सब सत्य है।

मुमुक्षुः- गुरुदेवका चातुर्मास था तो पिताजीको कहा, मुझे लाभ लेना है। फिर नौकरी करुँगा। तो पिताजीने कहा, हाँ, खुशीसे पहले लाभ लो।

समाधानः- उतने अध्ययन कंठस्थ किये थे, स्थानकवासीके .. कंठस्थ किये थे। जो कोई साधु आये उसे प्रश्न पूछने जाय। ऐसी एक मंडली थी। पूछने जाते थे।

मुमुक्षुः- .. बुद्धिका सद उपयोग किया।

समाधानः- यहाँ संस्थामें ऊतना ध्यान रखते थे। सब मन्दिरमें। यहाँके तो सही, बाहरके भी।

मुमुक्षुः- मार्गदर्शन देना, उसके प्लान देखने, कैसे करना, एक-एक बातका... हमारे मुंबईमें चारों मन्दिरोंमें कितने ही बार आकर...

समाधानः- .. वह काम बहुत अच्छा किया है। मुंबईमें तो समवसरण मन्दिर, मलाड, हर जगह।

मुमुक्षुः- सभी मन्दिरोंमें उनके ही मार्गदर्शन अनुसार किया गया। कितने ही दिनों तक, महिनों वहाँ रहकर सब योजनाएँ करते थे।

मुमुक्षुः- माताजी कहते कि, भाई! ज्ञायकको लक्ष्यमें रखना। देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा, वही है न, और क्या करना है?

समाधानः- शास्त्रोक्त करना।

मुमुक्षुः- नाप आदि सब तिल्लोय पण्णत्तिमें देखकर, जिनेन्द्र सिद्धान्त कोषमें देखकर, सब...

समाधानः- उसमें तो बुद्धि तो चलाते, लेकिन इसमें भी चलाते थे। इसमें भी उनको इतना था। सुबह उठकर स्वाध्याय करते थे। कहते थे, कल मन्दिर जायेंगे।

मुमुक्षुः- सब मन्दिरोंमें मोटर घुमायी, दर्शन किये। भण्डारमें ५१ रूपये डाले। जागृति कितनी!