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समाधानः- अंतरका करना छूट गया है। अंतरमें आत्माका करना, भवका अभाव कैसे हो? आत्माको मुक्तिका मार्ग अन्दरसे कैसे प्रगट हो? अन्दरमें यह करना है, उसके बजाय बाहरमें मानों मैं कुछ कर लूँ, दूसरा मानता है कि मानों मैं कुछ कर लूँ, ऐसा हो गया है।
मुमुक्षुः- गुरुदेवने जो मार्ग कहा है, उसे चूक गये। समाजमें अधिक प्रसिद्धि प्राप्त करनेके लिये... उसमें गुरुदेवका विरोध हो जाता है।
समाधानः- मैं धर्मकी प्रभावना करुँ और मैं धर्मकी प्रभावना करुँ, ऐसा हो गया है। तत्त्व दृष्टिसे कोई किसीको बदल नहीं सकता। सबके अभिप्राय भिन्न-भिन्न हैं। अभिप्राय भिन्न हो गये, वह कैसे पलटे? अभिप्राय भिन्न-भिन्न हो गये हैं।
मुमुक्षुः- अभिप्रायमें विरूद्धता मिटे नहीं, तब तक कैसे वह लोग ठीक कर पायेंगे? यहाँ तो कोई भी आये, कहाँ किसीको ना है।
समाधानः- यह तो गुरुदेवकी भूमि है, सब आ सकते हैं, ऐसा है। किसीको प्रतिबन्ध नहीं है, कोई नहीं आये ऐसा।
मुमुक्षुः- यहाँ ऐसा कुछ नहीं है।
समाधानः- ऐसा है ही नहीं।
मुमुक्षुः- कोई प्रतिबन्ध नहीं है।
समाधानः- यहाँ आकर सब रहे हैं। बाहरगाँवसे गुरुदेवका लाभ लेने आये हैं।
मुमुक्षुः- अनजानसे अनजान और परिचित सब आते ही हैं।
समाधानः- जिसको आना है, वह अपनी जिज्ञासासे आ सकते हैं। कोई रोकता नहीं, कोई किसीको कुछ कहता नहीं। कुछ नहीं है। (गुरुदेवश्री) बरसों तक विराजे। इस भूमिको पावन की है। यहाँकी बात पूरी अलग है।
मुमुक्षुः- गुरुदेवकी गुँज तो बहुत याद आता है।
समाधानः- भगवान आत्मामें कहाँ राग-द्वेष है? भगवान आत्मा भिन्न है। लेकिन यह सब अभिप्राय एवं मतभेदके कारण यह सब हो गया है। सोनगढमें कोई किसीको नहीं आने देता है, ऐसा थोडा ही नहै, सब आते हैं। किसीको आनेका बन्धन थोडा ही है।
तत्त्व ऐसा समझाया। पहले तो सब क्रियामें धर्म मानते थे। यह क्रिया और अन्दर दृष्टि (विपरीत)। वहाँसे गुरुदेवने कितना आगे-आगे जाकर समझाया। द्रव्य-गुण-पर्यायकी बातमें मतभेद हो गये। (तत्त्व) तो कहाँ दूर पडा रहा। गुरुदेवने तो कहाँ तक सबको पहुँचा दिये हैं। अन्दर आत्माका करनेका बाकी है। अपना अभिप्राय हो वैसा सब करते हैैं।