Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

२१४ पहुँचकर जीव आत्माका करना भूल जाता है और बाहरका सब हो जाता है।

मुमुक्षुः- ऐसा ही है।

समाधानः- बाहरमें कहाँ तक पहुँच जाना, उसका कोई विचार नहीं आता है।

मुमुक्षुः- द्रव्यार्थिकनय द्वारा देख तो तुझे द्रव्य ही ज्ञात होगा। इस विषयमें आप थोडी स्पष्टता करें।

समाधानः- द्रव्यार्थिक चक्षुसे देखे तो सब द्रव्य ही दिखता है, पर्यायार्थिकको बन्द करे, उस चक्षुको बन्द करे। अनादि कालसे जीवकी पर्याय पर दृष्टि है। उस दृष्टिको बन्द करके द्रव्यको देखे तो द्रव्य ही दिखता है। पर्याय उसमें नहीं है, ऐसा उसका अर्थ नहीं है। द्रव्य पर दृष्टि जीवने अनादि कालसे नहीं की है। द्रव्यको पहचाना नहीं है। द्रव्य अनादि शाश्वत है। आत्मामें अनन्त शक्तियाँ हैं। आत्मा अनन्त गुणोंसे भरा द्रव्य शाश्वत (है)। कभी उस द्रव्य पर दृष्टि नहीं की है और पर्याय पर दृष्टि करके ही भटका है। इसलिये तू द्रव्य पर दृष्टि कर तो द्रव्य ही दिखाई देगा। द्रव्यकी दृष्टिमें द्रव्य दिखाई देता है। और द्रव्यदृष्टिकी मुख्यतासे आगे बढा जाता है। इसलिये उसमें पर्याय नहीं है, ऐसा उसका अर्थ नहीं है। पर्यायका ज्ञान नहीं करना, ऐसा उसका अर्थ नहीं है।

वस्तु स्वरूप जैसा है वैसा जाननेसे मुक्तिका मार्ग यथार्थ साध्य होता है। जैसा है वैसा जानना चाहिये। पर्यायमें विभाव है, पर्याय अनादिकालसे है ही नहीं, ऐसा नहीं है। विभाव यदि हो ही नहीं तो उसे टालनेका प्रयत्न क्यों किया जाता है? तो करना ही नहीं रहता है। पर्याय है, पर्यायमें विभाव होता है, लेकिन उसे टालनेके लिये द्रव्य पर दृष्टि करे। उसका भेदज्ञान करे तो आगे जाया जाता है। मैं चैतन्य अनादि शाश्वत हूँ। परन्तु द्रव्यमें पर्याय ही नहीं है (ऐसा नहीं है)। उसमें शुद्ध पर्यायें होती हैं। द्रव्य पर दृष्टि करनेसे शुद्ध पर्यायें प्रगट होती है। और अन्दर साधना-दर्शन, ज्ञान, चारित्र रत्नत्रय प्रगट होते हैं। सम्यग्दर्शन द्रव्य पर दृष्टि करनेसे होता है, लेकिन उसमें ज्ञान सब होना चाहिये।

सम्यग्दृष्टिके साथ सम्यग्ज्ञान होता है। सम्यग्ज्ञानमें सब जाननेमें आता है। यह द्रव्य है, यह गुण है, यह पर्याय है, यह अशुद्ध पर्याय है, यह शुद्ध पर्याय है। द्रव्य पर दृष्टि करे, इसलिये पर्यायको निकाल देना ऐसा उसका अर्थ नहीं है। द्रव्यार्थिक चक्षुसे द्रव्य (दिखाई देता है)। फिर ऐसा आता है कि, पर्यायार्थिक चक्षुसे देखा जाय तो पर्याय दिखाई देती है। पर्याय नहीं है, ऐसा उसका अर्थ नहीं है।

मुमुक्षुः- बराबर है, परम सत्य।

समाधानः- द्रव्य पर दृष्टि कर, पर्यायका ज्ञान कर। पर्यायमें जो एकत्व बुद्धि