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(हो रही है), द्रव्यको भूल गया है, उस द्रव्यको पहचान। पर्यायको गौण करके आगे जाय। पर्यायका ज्ञान होता है कि मैं द्रव्य हूँ। उसमें गुण है, पर्याय है, विभावपर्याय, स्वभाव पर्याय है। भेदज्ञान करे इसलिये अन्दर सम्यग्दर्शनकी पर्याय प्रगट होती है। सम्यग्दर्शनकी पर्याय भी पर्याय है। अन्दर चारित्रकी पर्याय होती है, वह भी पर्याय है। उसका तो वेदन स्वयंको होता है।
इसलिये उसमेंसे पर्याय निकाल देना, ऐसा अर्थ नहीं है। परन्तु उसमें सर्वस्व माना है। द्रव्यको भूल गया है, इसलिये द्रव्यको पहचान, द्रव्य पर दृष्टि कर, ऐसा कहना है। द्रव्यको मुख्य करके पर्यायको गौण कर। परन्तु साधक दशामें मुनिदशा प्रगट होती है, चारित्र दशा प्रगट होती है, वह सब पर्याय है। द्रव्य पर दृष्टि करनेसे शुद्ध पर्यायें प्रगट होती है।
मुमुक्षुः- कोई जगह गुरुदेवने ऐसा कहा कि, द्रव्यको ग्रहण कर। और प्रवचनसारमें ऐसा कहा कि पर्यायचक्षु बन्द कर, उसमें क्या अपेक्षा है?
समाधानः- गुरुदेवका कहना वही है। प्रवचनसारमें ही ऐसा आता है कि द्रव्यार्थिक दृष्टिसे देखने पर द्रव्य दिखाई देता है। पर्यायचक्षुको बन्द कर, मतलब पर्यायचक्षुका ज्ञान मत कर, ऐसा उसका अर्थ नहीं है। पर्यायकी ओर देखना बन्द कर और द्रव्य पर दृष्टि कर, ऐसा कहना है। इसलिये उसे निकाल देना ऐसा अर्थ नहीं है। गुरुदेव तो सब बात करते हैं, द्रव्य पर दृष्टि कर। द्रव्यको देख, पर्यायका ज्ञान कर (आदि) सब गुरुदेवमें तो आता है। उनकी वाणीमें सब आता है।
एकान्त करेगा तो शुष्क हो जायगा, ऐसा भी गुरुदेवकी वाणीमें आता है। पुरुषार्थ किसका करना? ऐसा भी आता है, गुरुदेवकी वाणीमें। सब आता है। उसका मेल करना पडता है। अनादि कालसे पर्याय पर दृष्टि है, इसलिये उस चक्षुको बन्द कर और द्रव्यको देख।
मुमुक्षुः- पर्यायचक्षु को बन्द करते हैं तो ऐसा होता है, पर्याय तो है। समाधानः- पर्याय तो है, पर्याय नहीं है, ऐसा नहीं है। पर्याय निकल नहीं जाती। उस पर दृष्टि कर। द्रव्य पर दृष्टि करनेसे द्रव्य दिखता है, पर्याय पर दृष्टि करनेसे पर्याय दिखती है। उसका मेल कर। द्रव्यका क्या स्वभाव है, पर्यायका क्या स्वभाव है? द्रव्यकी मुख्यता करके पर्यायको गौण करके ज्ञानमें सब जान और साधना कर, ऐसा कहना है।