Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 65 of 1906

 

ट्रेक-

०१३

६५

हो। परन्तु वह कमल लिप्त नहीं होता है, कमल तो भिन्न ही रहता है।

ऐसे आत्मा तो अन्दर भिन्न ही है। अबद्ध, अस्पृष्ट, अनन्य। आत्मा अन्य कोई भी शरीररूप नहीं हो जाता। जन्म-मरण करे। मनुष्य, नारकी, देव आदि रूप हो नहीं जाता। आत्मा तो आत्मा ही रहता है। आत्मा अन्य-अन्य, अलग-अलग नहीं हो जाता। अनन्य-एकरूप जो अपना स्वरूप है वैसा ही रहता है। भिन्न-भिन्न अवस्था धारण करे, अलग-अलग पर्याय हो, आत्मा वैसा ही रहता है।

मुमुक्षुः- .. शुद्धतामें केलि करे, उसका मतलब क्या?

समाधानः- केलि यानी उसमें खेलते हैं, लीला करते हैं, ऐसा नहीं कहते? शुद्धतामें केलि करे, शुद्धता रस बरसे, अमृतधारा बरसे। आत्मामें सम्यग्दर्शन हो, आगे बढे, स्वानुभूतिमें खेलता हो तो शुद्धतामें केलि करे, अमृतरस बरसे। केलि-खेलता है, केलि यानी खेलता है।

मैं शुद्ध ही हूँ। शुद्धताको ध्यावे, शुद्धताका ध्यान करे, शुद्धतामें केलि करे, शुद्धतामें खेल करे, अमृतधारा बरसे। ऐसा करनेसे अन्दर अमृतकी धारा बरसती है। शुद्धताका ध्यान करता है।

मुमुक्षुः- गणधरदेवको ऐसी ऋद्धि होती है कि बारह अंगको गूंथते हैं। हमें ऐसी कोई ऋद्धि दीजिये कि हम विरोधियोंके बीचमें रहते हुए भी ज्ञानीके प्रति शंका उत्पन्न न हो और हमारी शांति भंग न हो, ऐसी कोई ऋद्धि दे दीजिये।

समाधानः- वह तो अपने पुरुषार्थके हाथकी बात है। विरोधियोंके बीचमें रहकर भी आत्माकी आराधना करना (कि) मैं ज्ञायक हूँ। बाहर नहीं आना। ज्ञायकस्वरूप आत्मा हूँ, देव-गुरु-शास्त्रकी महिमाकी आराधना, आत्माकी आराधना। ऐसी भावना, पुरुषार्थ करना। भीतरमें लक्षण पहचानकर दृढता करनी। बाहरकी बात सुन-सुनकर नक्की नहीं करना। प्रत्यक्ष देखे बिना कोई बात नक्की नहीं करना। जो प्रत्यक्ष देखा हो उसे ही नक्की करना। आत्माका स्वभाव भी अपना लक्षण पहचानकर नक्की करना। .. स्वाध्याय करना, दूसरी बातोंमें नहीं पडना।

मुमुक्षुः- वादविवादमें भी नहीं पडना?

समाधानः- वादविवादमें भी नहीं पडना। किसीमें नहीं पडना। अपनी उतनी शक्ति नहीं हो तो वादविवादमें नहीं पडना। आत्मा है तो पुरुषार्थ कर सकता है। आत्माका प्रयोजन साधना अपने हाथकी बात है। उसे कोई रोक नहीं सकता। न्यारे रहकर अपने आत्माकी साधना पुरुषार्थ करनेसे हो सकती है।

मुमुक्षुः- माताजी! कोई, ज्ञानियोंके लिये या गुरुदेवके लिये या किसीके भी लिये मानों कि दो-चार ऊलटे-सीधे शब्द बोले तो हम तो संसारी हैं, ऐसा भक्तिका राग