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करे तो होता है।
मुमुक्षुः- आत्माका चिंतवन-विचार करते रहेंगे तो आत्माकी लगनी लगेगी, ऐसे चिंतन विचार करनेसे?
समाधानः- चिंतन, विचार करे लेकिन अंतरमें लगनी तो स्वयं लगाये तो होता है।
मुमुक्षुः- आप कहते हो तब तो बहुत आसान लगता है कि, आत्मा मैं ऐसा हूँ। लेकिन परिणमनमें कठिन लगता है।
समाधानः- स्वयं स्वभाव है इसलिये सुलभ है। स्वयं ही है, अन्य नहीं है। स्वभावसे सुलभ है, स्वभाव उसका है। परन्तु अनन्त कालसे अनादिका अभ्यास है इसलिये क्षण-क्षणमें परिणति विभावकी ओर जाती है, एकत्वबुद्धि हो रही है। इसलिये दुर्लभ हो गया है। अनादिसे जो विभावका अभ्यास चल रहा है, उसमेंसे भिन्न होना उसे दुर्लभ लगता है। स्वभावसे सुलभ है।
मुमुक्षुः- .. तो कल्याण हो जायगा। ऐसा अवसर, ऐसे भावि तीर्थंकर, भावि गणधर मिले, इस पंचमकालमें... जन्म सफल हो गया।
समाधानः- पंचमकालमें गुरुदेव पधारे, तीर्थंकरका द्रव्य। महाभाग्यकी बात कि गुरुदेवका सान्निध्य मिला। ४५-४५ साल वाणी बरसायी। ... बहुत स्पष्ट किया।
मुमुक्षुः- ... आत्मा दिखता नहीं है, तो आत्मा कैसे दिखे? ऐसा पूछते हैं।
समाधानः- अन्धेरा दिखता है,... आत्मा जाननेवाला ज्ञायक है, उसे पहचाने तो अन्धेरा या प्रकाश, यह प्रकाश बाहरका और अन्धेरा भी जडका है। अन्दर ज्ञानमें जाननेवाला है उसे देखे तो वह अन्धकार नहीं है, परन्तु अन्दर जाननेवाला है, अन्दर जाननेवाली ज्याति है, उसे पहचाने तो होता है। वह बाहरसे देखता है। चर्म चक्षुसे देखे तो अन्धेरा दिखता है और प्रकाश दिखता है। अन्दर देखे कि ज्ञायक जाननेवाला कौन है? उसे पहचाने तो वह ज्ञानकी ज्योति है। जो अन्दर जाननेवाला है, यह सब विकल्पोंको जाननेवाला, सुख-दुःखको जाननेवाला है, अन्दरमें जाननेवाला है, वेदन है, उस वेदनके पीछे जो जाननेवाला है, वह स्वयं है। जाननेवाली ज्याति अन्दर है। जाननेवालेमें सब भरा है। अनन्त सुख और अनन्त आनन्द, ज्ञान सब जाननेवालेमें अनन्त गुण भरे हैं। अन्दर जाननेवाला है।
समाधानः- ... अशुभसे बचनेको शुभभाव आते हैं, परन्तु अन्दर आत्माको पहचाननेके लिये तो अन्दर सच्चा ज्ञान, सच्चा वैराग्य, महिमा सब अंतरमें होना चाहिये। शुभभावसे पुण्य बन्धता है। परन्तु आत्माको पहचाने तो मुक्तिका मार्ग प्रगट होता है। अशुभसे बचनेको शुभभाव आवे, लेकिन आदरणीय तो एक शुद्धात्मा है।
मुमुक्षुः- माताजी! आज सबने नंदीश्वरमें पूजा की, दर्शन किये, फिर सब देखा।