२२० उन लोगोंको अभी शुरूआत है, इसलिये प्रश्न पूछा कि अकृत्रिम जिनालय कैसे? मनुष्यने तो किये ही नहीं है न। शाश्वत है।
समाधानः- पुदगलके परमाणु वैसे... कुदरती रचना हो जाती है। भगवानकी महिमा ऐसी है। जगतमें जैसे भगवान सर्वोत्कृष्ट हैं, वैसे भगवानकी प्रतिमा भी सर्वोत्कृष्ट कुदरत बता रही है। मन्दिरों, प्रतिमाएँ सब शाश्वत हैं। जैसे यह पर्वत आदि किसीने बनाये नहीं हैं, वह तो कुदरती है। जैसे पर्वत, समुद्र आदि किसीने बनाया नहीं है। वैसे मन्दिरों भी कुदरती हैं। भगवान भी कुदरती है। पुदगलके परमाणु उस प्रकारसे रत्नकी प्रतिमारूप परिणमित होकर (रचना हुयी है)। कुदरतमें शाश्वत किसीने बनाया नहीं है।
मुमुक्षुः- सब रत्नमणिके होते हैं न?
समाधानः- हाँ, रत्नमणिके।
मुमुक्षुः- और ५०० देहमानके।
समाधानः- ५०० देहमानके, १०८ प्रतिमाएँ।
मुमुक्षुः- एक मन्दिरमें? एक मन्दिरमें १०८?
समाधानः- ऐसा है।
मुमुक्षुः- अर्थात उनका कभी विरह नहीं होता, चाहे जो भी काल हो तो भी।
समाधानः- वह तो शाश्वत हैं। नंदीश्वरमें, मेरुमें सब शाश्वत हैं।
मुमुक्षुः- भवनवासीके, ऊपरके सब...
समाधानः- हाँ, भवनवासीमें है, व्यंतरमें है, ज्योतिषीमें, वैमानिकमें सबमें है। उसमें कोई जघन्य मन्दिर, कोई मध्यम, कोई उत्कृष्ट (होते हैं)। किसीका नाप बडा, कोई छोटे ऐसे होते हैं।
मुमुक्षुः- उसका मतलब सर्वज्ञका कभी विरह नहीं है, ऐसा उसमेंसे समझना?
समाधानः- साक्षात तीर्थंकर तो सदा शाश्वत हैं। जो तीर्थंकर विराजते हैं, बीस विहरमान, वे तो विदेहक्षेत्रमें विराजमान होते ही हैं। उनका भी कभी विरह नहीं होता।
मुमुक्षुः- उनका कभी विरह नहीं होता।
समाधानः- हाँ, बीस विहरमान भगवान होते ही रहते हैं। और यह कुदरतमें जो प्रतिमाएँ हैं, वह भी शाश्वत रहते हैं। उसका कभी विरह नहीं होता।
मुमुक्षुः- आत्माका स्वरूप भी शाश्वत।
समाधानः- आत्मा शाश्वत है। आत्माका स्वरूप शाश्वत है। उसे भी किसीने नहीं बनाया है। आत्मा भी शाश्वत है। आत्माको किसीने बनाया नहीं है, भगवानकी प्रतिमा किसीने नहीं बनायी है। आत्माको किसीने बनाया नहीं है। वह भी शाश्वत है, ज्ञानस्वरूप आत्मा भी शाश्वत है। उसे पहचाने तो प्रगट होता है। पहचानता नहीं है इसलिये प्रगट