मुमुक्षुः- जाननेका जो स्वभाव कहा है, वह भी रागका कारण है, तो उससे विशेष क्या?
समाधानः- ... होने पर भी, अनादिसे परकी ओर, परकी ओर एकत्वबुद्धि की है। इसलिये पर ओर जाता है। जाननेका स्वभाव है, लेकिन स्वयं जानता कहाँ है? ज्ञायक रहकर जानता नहीं है। जाननेका स्वभाव होने पर भी स्वयंको पहचानता नहीं है। इसलिये उसे मुश्किल हो गया है। रागमें अटक गया है। अनादि कालसे स्वयं ज्ञायक होने पर भी, स्वयं चैतन्य होने पर भी विभावकी ओर एकत्वबुद्धि करके भ्रान्तिमें पडा है। स्वयं स्वयंको भूल गया है।
यह एक आश्चर्यकी बात है कि स्वयं स्वयंको छोडकर बाहर जाता है। इसलिये स्वयं स्वयंको जाने। ज्ञायक होनेके बावजूद उदासीन रहकर जानता नहीं है और कर्ता होकर दूसरेको मैं करता हूँ, करता हूँ, ऐसी कर्तृत्वबुद्धिमें पडा रहता है, ज्ञायक नहीं होता है। उसकी स्वयंकी भूल है, भ्रान्तिमें पडा है। जाननेके बावजूद, स्वयं स्वयंको जानता नहीं है, यह एक आश्चर्यकी बात है। जाननेका पुरुषार्थ करे तो जान सके ऐसा है।
मुमुक्षुः- ज्ञानको रागके साथ एकमेक कर लेता है।
समाधानः- एकत्वबुद्धि, रागमिश्रित ज्ञान (है)। राग भिन्न है और मैं ज्ञान भिन्न हूँ, ऐसे भिन्नता करे तो होता है। रागके विकल्प आये, उस विकल्पके साथ रागमिश्रित ज्ञान (चलता है)। राग सो मैं नहीं हूँ, मैं ज्ञान हूँ। ज्ञान सो मैं, मैं पूर्ण ज्ञायक हूँ। एकत्वबुद्धि छूटती नहीं, ज्ञायक होता नहीं। ज्ञाता... करे सो करतारा, जाने सो जाननहारा। ज्ञाता होता नहीं और कर्ताबुद्धि छूटती नहीं। ज्ञाता हो जा तो कर्ताबुद्धि छूटे। कर्ताूबुद्धि छूटे तो ज्ञायक होता है। दोनों एकसाथ रहे हैं।
मुमुक्षुः- ... साधककी पर्याय, समयसारकी १५वीं गाथामें। द्रव्य एवं भाव जिनशासन सकल देखे। वह ज्ञानीका भावश्रुत है न?
समाधानः- भावश्रुत। ते जिनशासन देखे खरे। द्रव्य तेमज भाव जिनशासन सकल देखे करे। उसकी प्रथम पंक्ति क्या है? द्रव्य तेमज भाव जिनशासन सकल देखे खरे।